Digital Hindi Blogs
December 25, 2009
मोहम्मद रफ़ी की याद में
हिंदुस्तान की फिल्मी दुनिया के सुप्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी साहब कि ८५ वी जयंती कल थी. इस महान कलाकार ने हमें सदा बहार और हमेशा जबान पर रहने वाले हजारो गाने दौलत की तरह दिए है. प्यासा, नील कमल, गाइड, नया दौर ऐशी न जाने कितनी फिल्मो में उन्होंने गाने गए होंगे. ऐसे महान कलाकार की याद में मै कुछ गाने पेश करना चाहता हु.
December 23, 2009
कही ये ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम तो नहीं.....
December 20, 2009
गुस्ताखी
मै ये कहता हु उनसे
की मेरे दिल को छुपा लो
अपने आँचल में
अदा से जवाब देते है वो
"गुस्ताखी मुआफ हो जनाब!"
December 13, 2009
इंतजार
तीसरी पहर है यह,
अब भी वक्त है ,
आ जाओ मीना
आ जाओ।
मै अभी भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हु,
अभी भी समय है,
वरन
सुबह हो जाएगी,
और उजाले की सफेद चादर मेरे शरीर पर पड़ जाएगी।
मेरा जनाजा निकलेगा,
यह सुबह मेरा कफन बनकर आएगी,
जल्दी करो,
मै तुम्हारे इंतजार में हु,
मीना आओ
आओ मीना आ जाओ!
दोस्तों यदि आप मेरी इस कविता को मेरी ही आवाज में सुनना चाहते है तो निचे दिए व्हीडीओ पर क्लिक करे.
December 11, 2009
बस नजरिये की बात है
हर पल इसका है एक गहना
बस नजरिये की बात है।
इस जिंदगी की क्या बात है
हर दिन यहाँ खास है
बस नजरिये की बात है ।
फिसलन
मै सन १९९८ में जापान गया था। उन दिनों हमारे यहाँ ये सरकने वाली सीढ़िया कहा हुआ कराती थी। वहा मैंने तकरीबन हर जगह इन्ही सीढियों पर चलाना था। आब आप ही सोचिये की जिसने कभी देखा तक नही ओ इन सीढियों पर कैसे चढ़ सकता है? फिर क्या कहने बड़ा मजा आया यु कहू या बहुत हाल हुआ ऐसे कहू कुछ समझ नही प् रहा हु। कुछ भी हो लेकिन हमारी तो हालत हो गई लेकिन उन् जापान वाशियों को बहुत मजा आया.
हुआ यु की मेरे पास तिन बेग थी। और मुझे इन सीढियों पर तो चढ़ाना भी नही आता था फिर मै इन बेग को लेकर कैसे चढ़ा सकता था। मेरे साथियों के पास भी दो दो बेग्स थी। सब परेशां थे। आख़िर मैंने सोचा की क्यो न बेग्स भी इन सीढियों पर रखा कर ऊपर भेज दी जाए। मैंने अपने साथी को किसी तरह ऊपर भेज दिया। फिर मैंने एक एक बेग इन सीढियों पर रखना शुरू किया। एक बेग ऊपर पहुची और उसे वो उठाने के लिए कह दिया। उसने उस बेग को उठाके बाजु में रख दिया। फिर मैंने दूसरी बेग रखी। इस तरह से सब बेग्स ऊपर पहुचाई गई। हमारी इस करामात को देख बहुत सरे जापानी लोग जमा हो गए और हँसाने लगे।
December 10, 2009
हाँ मैंने दुखो को दफना दिया है.
मुर्दा समझकर,
सुखा दिए है आँसू मैंने ग्रीष्म समझकर,
आख़िर इस बहुमूल्य मानव जीवन को
व्यतीत भी तो करना है।
एक कांटा चुभा था मेरे नाजुक दिल में,
बहुत दर्द हुआ था तब
अब मैंने उसे निकल फेंका है।
दूर बहुत दूर
अब वह मेरे दिल में कभी न चुभेगा, कभी नही।
यह मई अच्छी तरह जानता हूँ,
क्योकि अब मैंने फूंक फूंक कर कदम
रखना सिख लिया है।
अब तो घाव भी भर चुका है।
हाँ मैंने दुखों को दफना दिया है।
( यह कविता मैंने १९/०५/१९८० को लिखी थी।)
November 30, 2009
जिंदगी
देखो
एक कंकड़ पानी के समाव में डाल दो,
उसके आस पास लहरे उठेगी,
बस यही है जिंदगी,
उतर चढाव है जिंदगी के
जो जमन होते ही घेर लेते है,
अंत में छोटे है उसे।
November 29, 2009
बहार कहा से लाऊ
लगता है मेरे जख्मो से टपक रहा है जैसे लहू,
तेरे नैनो में मेरी दुनिया बसी है सारी,
वो यदि सागर में समां जाए तो मै कहा जाऊ।
तेरे प्यार की खातिर हमें जीना पड़ेगा,
गमो की आग में जलकर भी जीना पड़ेगा,
बहारो को देखकर हमें किस्मत पर रोना पड़ेगा,
तेरी याद में ख़ुद को डुबोना पड़ेगा।
मन को बहलाना पड़ेगा मदिरा पी पी कर
राते गुजारनी पड़ेगी कुछ खो खो कर,
बेदर्दी दुनिया के जुल्मो को झेलना पड़ेगा,
ख़ुद को उस काबिल बनाकर।
तू चली गई, तेरी यादो के दायरे भी चले गए यदि
तो मेरे उजड़े हुए चमन में
फिर बहार कहा से लाऊ।
( दोस्तों यह कविता मैने २८/०६/१९८० को लिखी थी.)
November 28, 2009
आहट
कोई दिल के द्वारे पे
धीरे-धीरे आता है।
फिर उस पे दस्तक दे
कही छुप जाता है।
दिल धड़कने लगता है।
कौन है जो आकर भी
कही छुप जाता है।
न रुला मेरे दिल को,
आ भी जा आ भी जा।
जब मै अकेले में
अंधेरे में बैठा हु
कोई आहट दे अंधेरे में खो जाता है
नज़रे फिर दूर दूर तक दौड़ती है
न मिलने पर किसी के
ये नज़रे उदास हो जाती है
न भूल मुझको तू
आ जा आ भी जा।
तेरे आने की आहट जब होती है
मेरे दिल के तार तब झन झना उठाते है
कोई धुन बजती है तेरी आहट पर
वो भी रुक जाती है, तेरे छुप जाने पर
मुझे आवाज तू दे, न भुला
आ भी जा आ भी जा.
तेरी याद आती है
बहारे खिल जाती है
सितारे निकल आते है
चाँद मुस्कराता है
फूल बरसते है
तेरे कदमो पर
न ठुकरा हमें
आ भी जा आ भी जा.
अहम्...
अहम् न करो हे मानव,
न बनो तुम दानव,
अहम्,
तो दानव का प्रतिरूप है।
हे मानव,
तू अहम् करता है
इन कौडियों के सहारे
आँखे तरेरता है
क्यो अपने करेक्टर का नाश करता है
अरे
ये दौलत तो चार दिन की है
हाथ का मैल है ये तो
ये वो चीज है
जो आज यहाँ
कल वहा रहती है
आज तू धनवान है
कल निर्धन हो जाएगा
अरे
एक दिन एक काला कौवा आएगा
इन सोने की कौडियों को
मोती समझकर
और ख़ुद को हंस मानकर
निगल जाएगा
और तू देखता ही रह जाएगा
हो जाएगा
मोहताज तू कौड़ी कौड़ी के लिए
न पूछेगा तेरा भाई
न पूछेगा बेटा तुझे
तू एक जून रोटी के लिए
तरस जाएगा।
हे मानव अहम् न कर तू
न कर अहम्।
November 27, 2009
November 21, 2009
खुबसूरत जिंदगी
ना कोई सूरत है,
ना कोई चाहत है,
ना कोई जरुरत है,
फिर भी ये जिंदगी
क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।
ना कोई सपना है,
ना कोई सच है,
ना कोई साथी है,
ना कोई माझी है,
फिर भी ये जिंदगी
क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।
November 12, 2009
बुढापा
मै दरवाजा खोलता हु तो उसे देख हैरान होता हु
वो आया है मेरे दरवाजे पे बिन बुलाये मेहमान कि तरह
जिसे मै सब अपने आप से कोसो दूर रखना चाहते है
मै क्या करू उसे कैसे भागवु समझ नही पाता हु
समजते समजते हि शाम ढल जाती है
वो है कि दरवाजे पर से हटता हि नही है
क्या करू क्या न करू सोचते सोचते थक जाता हु
और उस आगंतुक को आपने घर मे हि पनाह दे देता हु
अपनी जिंदगी के अंत तक रहने के लिये
जिसका नाम लेने से भी लोग कतराते है
मै उसे अपने हि घर में पनाह देता हु
जिसे सब बुढापा कहते है उसे हि मै गले से लगाता हु.
November 10, 2009
November 9, 2009
तलाश
तो बात ये है की मेरे घर में लाईट की व्यवस्था न होने से पढाई में बहुत दिक्कत होती थी. इसलिए दोस्त लोग अपने घर बुला लेते थे. कई बार तो मेरे टीचर जो हॉस्टल में रहते थे वे भी मुझे पढाई करने के लिए उनके रूम पर बुला लेते थे. इस तरह मेरा जीवन व्यतीत हो रहा था. मेरे साथ पढ़ने वाला एक दोस्त था जिसका नाम था अविनाश माथुर. उसके पिता मिल में इंजिनीअर थे सो उन्हे रहने के लिए अच्छा घर मिला हुआ था. एक दिन वो दोस्त मुझे अपने घर ले गया. वहा उसने अपनी माँ से कुछ बात की और उसकी माँ ने मुझे परीक्षा के दिनों में उनके घर पढाई के लिये आने को कहा. इस तरह मै उनके घर रत को जाने लगा. रात में पढाई कृते वक्त उसकी माँ हमें बादाम का दूध पिने के लिये देती थी. उसकी छोटी बहन मेरे आने पर एक गाना गति थी " बम्बई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो" उस समय यह गाना नया ही था. (उन दिनों मुंबई को बम्बई कहते थे).
परीक्षा होने पर फिर किसी और जगह हमारा मुकाम होता था. एक दिन पता चला वह दोस्त हमारा शहर छोड़ गया. कारन पता नहीं चला.लेकिन आज भी वो यद् आता है. उसकी तस्वीर मेरे पास है जो मै यहाँ दे रहा हु.
एक दिन की बात थी....
अंधेरी रात थी
वो बैठी मेरे साथ थी
चल रही बरसात थी
वो भिगी हुई थी
सहमी हुईसी थी
थंड से काप रही थी
हमने साथ रहने कि सौगंध खाई थी
फिर भी क्या हुआ
ऐ रब्बा कि वो मुझसे यु खफा हो गई
जिंदगी के अंधेरी गलीयारो मे
यु भटकने के लिये अकेला छोड गई
तुझे इतनी भी दया नाही आई
कि मै अकेले कैसे जी पाऊंगा
October 31, 2009
प्यार
October 29, 2009
चाँद पर आशियाना
शायद वो नौबत उन पर नही आएँगी। शायद वो नौबत न आए इसीलिए आज का इन्सान चाँद पर आशियाना बसने की सोच रहा है। और आज उसे सफलता मिलाती नजर आ रही है। चाँद पर पानी जो मिलने के समाचार आ चुके है। सोचिये दोस्तों सोचिये और सोचिये। गहरे से सोचो।
October 27, 2009
पानी बचाए
पानी का उपयोग इस काम में होता है।
१) पिने के लिए
२) खेती के लिए
३) रोज मर्रा की सफाई के लिए
४) कारखानों के लिए
५) बिजली के उत्त्पादन के लिए
i)जल से बिजली का उत्त्पादन
ii) कोयले से बिजली का
iii) अनु ऊर्जा
बिजली के उत्तपादन में पानी का बहुत जादा मात्र में उपयोग होता है. पण बिजली तो पानी के उपयोग से ही बनती है. इसका साफ मतलब निकालता है की यदि हम बिजली की बचत करते है तो पानी की बचत ही हो जाती है. तो फिर हम बिजली ही क्यों न बचाए. और ऐसा करने से हमारे हातों एक बहुत बड़ा सामाजिक कार्य भी संपन्न हो जाता है. तो दोस्तों आगे आये और बिजली की बचत करे.
October 22, 2009
तुम्हारी तस्वीर
आसमां निहारता हूँ
तो
बेसुमार तारो में
मुझे तुम्हारी तस्वीर नजर आती है ।
मैं उस तस्वीर को
अपनी आंखों में समां लेता हूँ।
और तुम्हारी यादों को
समेटते हुए
नींद की आगोश में समां जाता हूँ।
जब सुबह होती है
आसमां में बादल नजर आते है
और मुझे उन बादलों में भी
तुम्हारी ही तस्वीर
नजर आती है।
लेकिन
मैं अपने आंसुओ से
उस तस्वीर को मिटा देता हूँ
और तुम्हे भूल जाता हूँ
चाँदनी रात में
तुम्हे बेशुमार
तारों में धुंडने के लियें।
यादों के झरोके से
तुम्हारी खिलखिलाती तस्वीर पाता हूँ
और उस तस्वीर को देख
मैं उदास हो जाता हूँ
अपनी तकदीर को कोसता हूँ
दिल ही दिल में रो लेता हूँ
और जब मन भर जाता है रोने से
तो आंसू पोंछ लेता हूँ
दिल को समझाता हूँ
जैसे कुछ हुआ ही न हो
दिल बेचारा गम का मारा
क्या न करता
गम भुलाकर चुपचाप हो जाता है
और मैं यादों के झरोके से फिर झांकनेलगता हूँ.
जब याद तुम्हारी आती है
वो (नींद) हमसे रूठ कर
ओझल आखोसे हो जाती है.
जब याद तुम्हारी आती है
जब याद तुम्हारी आती है
करवट भी न बदली जाती है
जब याद तुम्हारी आती है
जब याद तुम्हारी आती है
आखो से नदिया बहती है
जब याद तुम्हारी आती है
जब याद तुम्हारी आती है
जब याद तुम्हारी आती है
October 17, 2009
October 15, 2009
प्रकृति और मैं
तुम्हारी यादों से टकराते है,
तो मैं एक भयानक आग में
झुलस जाता हूँ।
तब
मेरे भीतर जमीं हुई कल्पनायें
बर्फ की चट्टानों की तरह
पिघलकर बह जाती है।
और
ये पिघली हुई बर्फ
भीतर की आग से
गमों के बादलो में परिवर्तित होकर
दिल के आकाश में
बिजलियाँ कोंधाती है।
और
बादलों की गडगडाहट से
एक क्षण में ही
मेरे जीवन की धरती
फट जाती है।
और मैं
उसमे समां जाता हूँ
कुछ पलों के लिए ।
और तब
मेरी कलम से
शब्दों के आसूं बहकर
कोरे कागज को
नीली स्याही से ढंक लेते है। (रविन्द्र रवि ४/१२/१९८०)
धड़कन
मेरी धडकनों से टकराती है,
तो चटकाने की आवाज आती है।
लगता है किसी का दिल
गिरकर चूर चूर हो गया है,
वो मुझे देखते है
मै उनको देखता हूँ
इस भ्रम में की
शायद उनका दिल टुटा है ।
उनके जाने के बाद
महसूस करता हूँ ,
दिल उनका नही
मेरा टुटा है ।
October 13, 2009
खुबसूरत जिंदगी
October 8, 2009
सदिया गुजर जाती है
दो लम्हों के बिच फासला बहुत होता है,
तुम आखो से ओझल जो हो जाती हो
तो लगता है सदिया गुजर जाती है।
जिंदगी की गलियो में भटक जाते है हम
तुम्हे इन राहों में धुन्दते रह जाते है हम,
तुम आखो से ओझल जो हो जाती हो
तो लगता है सदिया गुजर जाती है।
जिंदगी के चौराहे पर मायूस हो जाते है हम,
उलझन में पड़ जाते है किस रह पे जाना है।
तुम आखो से ओझल जो हो जाती हो ,
तो लगता है सदिया गुजर जाती है।
October 7, 2009
इंसानियत
September 26, 2009
तुम जियो हजारो साल...........( यहाँ क्लिक करे )
अभी अभी तो आए हो बहार बन के छाए हो....."
एक सदाबहार और महानकलाकार का ये गीत है। उनका नाम उनका नाम तो हर किसी की जबान पर होता है. नाम ही नहीं उनपर फिल्माया गया हर गाना आज भी जुबान पे आता है तो दिल झुमने लगता है.देव आनंद जिनका सही नाम है "धरम देव पिशोरीमल आनंद" आज देव साहब का जमन दिन है. २६ सितम्बर १९२३ को उनका जन्म हुआ था. आज देव साहब ८६ साल के हो चुके है. आज भी उनका दिल जवा लगता है. जब उन्हें टी.व्ही.पर कभी देखते है.क्या अदाकारी थी देव साहब की. शिर पर वो बालो का फुगा. ओ झूम के बालो को लहराते हुए भागते हुए गीत गाना. उस ज़माने में मुझे लगता है कोई हीरो आज जैसे नाचना गाना नहीं करते थे. उन दिनों बगीचे में या तो कही जंगल में या समुन्दर किनारे भागते हुए गाने गाये जाते थे।
देव साहब का पहिली करिअर जब मै नेट से धुन्धने लगा तो पता चला की बतौर हीरो १९४६ में उनकी पहली फिल्म आई थी "हम एक हैऔर उनकी आखिरी फिल्म २००५ में आई थी " मि.प्राइम मिनिस्टर" लेकिन शायद अभी २००९ में मुझे हल्का सा यद् आ रहा है की वे फिर किसी फिल्म में कम कर रहे ऐसी ख़बर पढ़ी थी।
इसीलिए उन्हें सदाबहार कलाकार कहते है। इश्वर से प्रार्थना करता हु देव साहब को लम्बी उम्र देन
" तुम जियो हजारो साल
साल के दिन हो पचास हजार"
September 22, 2009
मै गुनहगार हूँ
धुम्रपान
नींद आती नही
आखो से कोसो दूर है ओ ।
परेशां हो जाता हूँ जो न दिखे ओ।
दिल को बहुत समझाता हूँ।
दिल है के मानता ही नही।
ओ है की आती ही नही।
क्या करू क्या न करू,
सोच कर और भी दूर भाग जाती है ओ।
चाहता हूँ बहुत उसे पर दूर ही रहती है जो।
नींद कहते है उसे लोग ये सुना है हमने।
September 21, 2009
आशियाना
शायद वो नौबत उन पर नही आएँगी। शायद वो नौबत न आए इसीलिए आज का इन्सान चाँद पर आशियाना बसने की सोच रहा है। और आज उसे सफलता मिलाती नजर आ रही है। चाँद पर पानी जो मिलने के समाचार आ चुके है। सोचिये दोस्तों सोचिये और सोचिये। गहरे से सोचो।
September 19, 2009
मेरा मन और धुम्रपान
मेरा मन मुझसे
खपा हो चला है।
नजदीक जाऊ तो गुर्राता है ।
मै परेशां हो जाता हूँ ।
पूछने पर वो कुछ भी बताने से कतराता है।
थोडी हिम्मत जुटाई
उसे प्यार से पुकारा और
पूछा तो उसने बताया ,
मै तुमसे बहुत खफा हूँ ।
तुम रोज रात को मुझसे वादा करते हो।
की तुम कल से धुम्रपान नहीं करोगे
लेकिन सुबह होते ही उसे गले से लगाते हो ।
मुझ से किये वादे भूल जाते हो ।
मै क्या करता,
चुपचाप उसके सामने गर्दन झुकाए खडा रहा .
मुह से एक शब्द भी न निकाल सका।
मन ही मन सोचता रहा,
और रात पुनः वादा करने को तैयार हो लिया ।
September 18, 2009
कल रात अँधेरी रात थी,
अचानक मुझे सिसकिया सुनाई दी,
मै सकपकाया ,
मेरे ही घर में ये कौन आया,
मैं घबराया ,
पीछा किया उन सिसकियों का और
मेरे मन को रोता पाया ,
मेरा मन रो रहा था,
आसू बहा रहा था ,
बाल नोच रहा था ,
बिलख रहा था ,
आख़िर मुझसे देखा नहीं गया ,
रहा नहीं गया ,
मैंने उससे पूछ ही डाला,
तू काहे को रो रहा है
वो बोला महंगाई से मैं झुलस गया हूँ ,
खाने पिने को तरस गया हूँ,
मैं तिन दिन से भूखा हूँ,
मगर भूख सहता हूँ,
क्यों की मेरे पास मोबाईल है ,
मैं अपने दोस्तों से,
मन भर के बाते ज्यो करता हूँ,
चलो मुझे तिनके का सहारा तो मिला,
मेरा चेहरा तो रहता है खिला खिला,
क्या हुआ यदि खाने को कुछ न मिला ।
( दोस्तों यह कविता मैंने अभी १९/०९/२००९ को लिखी हे)
September 17, 2009
बुढापा जो बरपा है.....
अभी अभी मैं नींद से जागा हूँ,
सपने में एक बड़ा सा आइना देखा
आईने में खुद को निहारते देखा
देखते ही में लडखडाया
जल्द ही खुद को संभाल न पाया
क्योकि
आईने में ख़ुद को जरुरत से ज्यादा बुढा पाया
बालो का वो सफेद रंग
मुझको बिलकुल नहीं भाया
पर क्या करू?
हालात को झूठलातो नहीं सकता
बुढापा जो बरपा है
छुपा तो नहीं सकता
खुदा ने दिया है
जीवन उसे जी भर कर तो जीना है
बुढे हुए ये सोच कर तो न मरना है
मरने की सोच आते ही
मै नींद में भी डर गया
ख़ुद संभलते संभलते ही
लड़खड़ाके गिर गया
गिरते ही नींद खुल गयी
और उठा तो सीधे कंप्युटर पे आ गया
और अपना वो सपना
मेरा जीवन
क्या ये जीवन भी जीवन है?,
इस जीवन में कहा है जल
कहा है पेड़ पौधे इसमें
कहा नदी और नाले दिखते
दूर दूर तक देख चूका हूँ
बस यहाँ दिखता है मरुस्थल,
ये जीवन भी क्या जीवन है,
क्या ये जीवन भी जीवन है?
September 14, 2009
मैं व्यस्त हूँ (१९/२/१९८१)
मै व्यस्त हूँ अपने आपको लेकर
एक नई सृष्टि के निर्माण में,
उस नूतन सृष्टि के
जो मुझमे, मेरे अपने में है।
मैं विकृत हूँ,
मुझे मत छेडो ऐ क्षणीकाओ
मत छेडो मुझे,
वरन
किसी ग्रसित विणां की तरह,
मैं झंकृत हो जाऊंगा,
उसके टूटे हुए तारो की झंकार
तुम नही सुन सकोगी,
मै व्यस्त हूँ
विकृति को
सुकृत बनाने में
मुझे मत छेडो
मेरे जीवन की क्षनिकाओ मुजे मत छेडो,
मेरा मन
मै अपनी हर एक कविता पर जिस साल वोमैंने लिखी है वह साल लिख रहा हूँ