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October 29, 2009

चाँद पर आशियाना

इस धरतीपर वास करानेवाला हर एक जिव अपने रहने के लिए आशियाना तलाशता है। हर प्राणी का बच्चा आपनी माँ की गोद में आशियाना पाता है। वाही उसके लिए आशियाना होता है। बड़ा होने पर वह भी अपने आशियाने की तलाश करना सुरु कर देता है। इन्सान मात्र इन सबसे अलग होता है। पैदा होने से अंत तक अपने ही माता -पिता के साये में मतलब आशियाने में बड़ा होता है। लेकिन जनसँख्या बढ़ जाने से नए नए आशियाने तयार किए जाते है। प़ता नही वह खुदा ऊपर से जब देखता होगा तो क्या सोचता होगा। उसे चारो तरफ घर ही घर नजर आते होंगे। इन्सान ही इन्सान नजर आहते होंगे। वही भगवान जब पृथ्वी के भविष्य में झांक कर देखता होगा तो क्या पाता होगा। अंदाज लगाइए जरा। क्या नजारा दिखता होगा उसे इस धरती का। भगवान को धरती पर चारो तरफ शिर्फ और शिर्फ घर, इमारते, बड़े बड़े मॉल्सही दिखाई देंगे धरती पर हरियाली कही भी नही होंगी। यूँ कहिये की हरियाली धरती से गायब हो गई होंगी जरा गौर कीजिये और सोचिये की ऐसा हुआ तो क्या हालत होगी इस इन्सान की। हमारी भावी पीढी क्या कहेगी हमारे बारे में। किस कदर वो हमें कोसेंगे।
शायद वो नौबत उन पर नही आएँगी। शायद वो नौबत न आए इसीलिए आज का इन्सान चाँद पर आशियाना बसने की सोच रहा है। और आज उसे सफलता मिलाती नजर आ रही है। चाँद पर पानी जो मिलने के समाचार आ चुके है। सोचिये दोस्तों सोचिये और सोचिये। गहरे से सोचो।

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