दोस्तों
मुझे बचपन से ही कला और विज्ञान में बहुत रस है. कला और विज्ञानं कही मेल नहीं खाता. दरअसल हुआ यु की मेरी चाहत सुरु से स्कुल के ज़माने से विज्ञानं की तरफ थी. लेकिन थोडा बड़ा हुआ तो रविन्द्र नाथ टैगोर जैसे महँ कवी की कविताये पढाने को मिली और बस मैंने ठान ली की उन्ही की तरह हर पहलू में काम करना है. बस विज्ञानं के साथ साथ कविताये पढना-लिखना, चित्रकला, मूर्ति बनाना और न जाने क्या क्या. कॉलेज में था तब एक खाली डायरी मिल गयी थी. उसमे कावितये लिखता रहा. आज भी वह डायरी मेरे पास है. उस समय कि चित्रकला मी जतन नाही कर पाया. अब तो जिंदगी मी इस कदर उलझा गये है कि कविता बडी मुश्कील से कर पाता हू. बाकी सब कोसो दूर है.