न कोई मूरत है,
न कोई सूरत है,
न कोई चाहत है,
न कोई जरुरत है,
फिर भी मेरे ऐ दोस्त बता,
ये जिंदगी क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।
न कोई सपना है,
न कोई सच है,
न कोई साथी hai ,
न कोई माजी है,
फिर भी मेरे ऐ दोस्त बता,
ये जिंदगी क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।
( यह कविता मैंने आज १ ३/१०/२००९ को लिखी है)
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