ये दुनिया नही मेला है,
मुसाफिरों का झमेला है,
यहाँ न भाई, न बहन, न माता-पिता,
हर आदमी बस अकेला ही अकेला है।
ये दुनिया नही मेला है।
सबकी आखों मे एक सपना है,
ये वो और वो भी अपना है,
परन्तु मरने के बाद ,
सब साथ छोड़ देते है,
हमेशा के लिए,
ये जीवन बस मृगतृष्णा है।
मुसाफिरों का झमेला है,
यहाँ न भाई, न बहन, न माता-पिता,
हर आदमी बस अकेला ही अकेला है।
ये दुनिया नही मेला है।
सबकी आखों मे एक सपना है,
ये वो और वो भी अपना है,
परन्तु मरने के बाद ,
सब साथ छोड़ देते है,
हमेशा के लिए,
ये जीवन बस मृगतृष्णा है।
2 comments:
This is the reality.Why to worry? Accept it. But this does not mean to hate th world.Iss duniyame aise raho ki na kisise pyar hai na khar hai(P D Mistri)
Thanks for comments. I will try to live as per your advice.
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