आँखों से टपकते आसुओ को जब मै देखता हु,
लगता है मेरे जख्मो से टपक रहा है जैसे लहू,
तेरे नैनो में मेरी दुनिया बसी है सारी,
वो यदि सागर में समां जाए तो मै कहा जाऊ।
तेरे प्यार की खातिर हमें जीना पड़ेगा,
गमो की आग में जलकर भी जीना पड़ेगा,
बहारो को देखकर हमें किस्मत पर रोना पड़ेगा,
तेरी याद में ख़ुद को डुबोना पड़ेगा।
मन को बहलाना पड़ेगा मदिरा पी पी कर
राते गुजारनी पड़ेगी कुछ खो खो कर,
बेदर्दी दुनिया के जुल्मो को झेलना पड़ेगा,
ख़ुद को उस काबिल बनाकर।
तू चली गई, तेरी यादो के दायरे भी चले गए यदि
तो मेरे उजड़े हुए चमन में
फिर बहार कहा से लाऊ।
( दोस्तों यह कविता मैने २८/०६/१९८० को लिखी थी.)
2 comments:
बस इतना कहूँगा कि मुझे भाव बहुत सुन्दर लगे
संजयजी शुक्रिया
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