मै गुनहगार हु इस देह का,
जिसकी चिता मैंने ३० साल पहले ही सुलगा दी थी।
जिसे मै 3० साल से तिल तिल कर जला रहा हूँ,
मेरा देह भीतर ही भीतर झुलस गया है उस आग से,
मै उन जख्मो को देख भी तो नही सकता,
जख्मो पर मरहम भी तो नही लगा सकता,
मै कुछ भी तो नही कर सकता,
मै कुछ भी तो नही कर सकता।
मैं बार बार बार उससे कहता हूँ मुझे बख्श दो,
"कुछ पल " की है जिंदगी जी भर के तो जीने दो
मगर वो है की मानती ही नही
मेरी परेशानियाँ जानती ही नही
मेरा जीवन अब हो गया है धुआ
इंतजार है मुझको कही से मिले दुआ
जो मैं उसकी दिल्लगी को लताड़ दू
अपनी जिंदगी को उसकी आगोश से निकाल दू
पर ये होगा की नही, ये मै नही जानता।
मै गुनहगार हूँ उनका जो मुझे
दिलो जां से चाहते है,
मै गुनाहगार हूँ मेरे अपनो का,
लेकिन मै कुछ भी तो नही कर सकता,
में कुछा भी नही कर सकता।
मेरा दिल अन्दर ही अन्दर जलता है
आग सी सुलगती है मेरे अन्दर
बहुत ही चाहता हूँ मै
सिगरेट छोड़ना पर अब मेरे हाथो मै कुछ नही
अब जो करना है उसे ही करना है
मै अब मेरा नही रहा !
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