दोस्तों शायद आपके शहर में बड़े बड़े मॉल होंगा या होंगे। मई ऐसा इसलिए लिख रहा हु क्योकि आज कल तक़रीबन हर शहर में कमसे कम एक और बड़े शहर में एक से अनगिनत मॉल हो गए है। इन मॉल में चढ़ने के लिए हमको मेहनत करने की जरुरत ही नही पड़ती। क्योंकि उन्होंने आपको सीधा ऊपर पहचाने के लिए कुछ खास सुविधा ज्यो दे रखि है। हमारे देश की परम्परा सीढियों से ऊपर चढ़ने की रही है। लेकिन इस पाश्च्यात्त संस्कृति ने हमें इतना आलसी बना के रखा दिया है की भाइयो अब हमें ऊपर वाले माले पर चढ़के जाने की भी जरुरत नही पड़ती। चलती सीढ़िया जो हमें दी गई है। बड़ा मजा आता है इन सीढियों पर चढ़ने में। कभी आप भी उस
नज़ारे को देखिये जब कोई नया भिडू उस सीधी पर चढ़ने की कोशिश कर रहा होता है। बहुत मजा आता है । लेकिन ख़बरदार उसे यह पता नही चलना चाहिए की आप उसे ताक रहे है। और हा एक और बात का ध्यान रखे उसे देखकर बिल्कुल भी हसना नही है।
मै सन १९९८ में जापान गया था। उन दिनों हमारे यहाँ ये सरकने वाली सीढ़िया कहा हुआ कराती थी। वहा मैंने तकरीबन हर जगह इन्ही सीढियों पर चलाना था। आब आप ही सोचिये की जिसने कभी देखा तक नही ओ इन सीढियों पर कैसे चढ़ सकता है? फिर क्या कहने बड़ा मजा आया यु कहू या बहुत हाल हुआ ऐसे कहू कुछ समझ नही प् रहा हु। कुछ भी हो लेकिन हमारी तो हालत हो गई लेकिन उन् जापान वाशियों को बहुत मजा आया.
हुआ यु की मेरे पास तिन बेग थी। और मुझे इन सीढियों पर तो चढ़ाना भी नही आता था फिर मै इन बेग को लेकर कैसे चढ़ा सकता था। मेरे साथियों के पास भी दो दो बेग्स थी। सब परेशां थे। आख़िर मैंने सोचा की क्यो न बेग्स भी इन सीढियों पर रखा कर ऊपर भेज दी जाए। मैंने अपने साथी को किसी तरह ऊपर भेज दिया। फिर मैंने एक एक बेग इन सीढियों पर रखना शुरू किया। एक बेग ऊपर पहुची और उसे वो उठाने के लिए कह दिया। उसने उस बेग को उठाके बाजु में रख दिया। फिर मैंने दूसरी बेग रखी। इस तरह से सब बेग्स ऊपर पहुचाई गई। हमारी इस करामात को देख बहुत सरे जापानी लोग जमा हो गए और हँसाने लगे।
2 comments:
एसे हि "कुछ पल" मिलके जिंदगी बनती है... खट्टी, मिठी. नमकिन... पलोंको जोडते रहिए. शब्दोंमे लिखकर रखिये ताकी हम भी जाने आपके कुछ पल..
साळसूद पाचोळा..
जरूर दोस्त पालो को जोडने का हि काम हम कर रहे है. आपकी अच्छी कामना ओ के लिये धन्यवाद. मेरे दुसरे ब्लॉग जरूर पढे.
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