एक दिन कि बात थी
अंधेरी रात थी
वो बैठी मेरे साथ थी
चल रही बरसात थी
वो भिगी हुई थी
सहमी हुईसी थी
थंड से काप रही थी
हमने साथ रहने कि सौगंध खाई थी
फिर भी क्या हुआ
ऐ रब्बा कि वो मुझसे यु खफा हो गई
जिंदगी के अंधेरी गलीयारो मे
यु भटकने के लिये अकेला छोड गई
तुझे इतनी भी दया नाही आई
कि मै अकेले कैसे जी पाऊंगा
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