मेरे घर के दरवाजे पर कोई दस्तक देता है
मै दरवाजा खोलता हु तो उसे देख हैरान होता हु
वो आया है मेरे दरवाजे पे बिन बुलाये मेहमान कि तरह
जिसे मै सब अपने आप से कोसो दूर रखना चाहते है
मै क्या करू उसे कैसे भागवु समझ नही पाता हु
समजते समजते हि शाम ढल जाती है
वो है कि दरवाजे पर से हटता हि नही है
क्या करू क्या न करू सोचते सोचते थक जाता हु
और उस आगंतुक को आपने घर मे हि पनाह दे देता हु
अपनी जिंदगी के अंत तक रहने के लिये
जिसका नाम लेने से भी लोग कतराते है
मै उसे अपने हि घर में पनाह देता हु
जिसे सब बुढापा कहते है उसे हि मै गले से लगाता हु.
5 comments:
nice
"जो जा के न आये बो जवानी है, और जो आके न जाए बो बुढ़ापा है. " सच है, जीवन के साथ म्रत्यु भी साये की तरह साथ साथ चलती है कब क्यों कैसे कहाँ कुछ भी नही मालुम फिर भी जीए चले जा रहे है. होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है. बेहोशी का आलम कुछ ना पूछो, सारे जबाब होश आते ही मिल जायेंगे.
"जो जा के न आये बो जवानी है, और जो आके न जाए बो बुढ़ापा है. " सच है, जीवन के साथ म्रत्यु भी साये की तरह साथ साथ चलती है कब क्यों कैसे कहाँ कुछ भी नही मालुम फिर भी जीए चले जा रहे है. होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है. बेहोशी का आलम कुछ ना पूछो, सारे जबाब होश आते ही मिल जायेंगे.
धन्यवाद जी! बहुत ही सही बात कही है आपने.
होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है.
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