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November 12, 2009

बुढापा

मेरे घर के दरवाजे पर कोई दस्तक देता है
मै दरवाजा खोलता हु तो उसे देख हैरान होता हु
वो आया है मेरे दरवाजे पे बिन बुलाये मेहमान कि तरह
जिसे मै सब अपने आप से कोसो दूर रखना चाहते है
मै क्या करू उसे कैसे भागवु समझ नही पाता हु
समजते समजते हि शाम ढल जाती है
वो है कि दरवाजे पर से हटता हि नही है
क्या करू क्या न करू सोचते सोचते थक जाता हु
और उस आगंतुक को आपने घर मे हि पनाह दे देता हु
अपनी जिंदगी के अंत तक रहने के लिये
जिसका नाम लेने से भी लोग कतराते है
मै उसे अपने हि घर में पनाह देता हु
जिसे सब बुढापा कहते है उसे हि मै गले से लगाता हु.

5 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Vishnu Prasad Shivhare, Bhopal said...

"जो जा के न आये बो जवानी है, और जो आके न जाए बो बुढ़ापा है. " सच है, जीवन के साथ म्रत्यु भी साये की तरह साथ साथ चलती है कब क्यों कैसे कहाँ कुछ भी नही मालुम फिर भी जीए चले जा रहे है. होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है. बेहोशी का आलम कुछ ना पूछो, सारे जबाब होश आते ही मिल जायेंगे.

Vishnu Prasad Shivhare, Bhopal said...

"जो जा के न आये बो जवानी है, और जो आके न जाए बो बुढ़ापा है. " सच है, जीवन के साथ म्रत्यु भी साये की तरह साथ साथ चलती है कब क्यों कैसे कहाँ कुछ भी नही मालुम फिर भी जीए चले जा रहे है. होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है. बेहोशी का आलम कुछ ना पूछो, सारे जबाब होश आते ही मिल जायेंगे.

रविंद्र "रवी" said...

धन्यवाद जी! बहुत ही सही बात कही है आपने.

संजय भास्‍कर said...

होश का दूसरा नाम बुढ़ापा है.