(दोस्तों मेरी दि ११/०८/१९९६ को लिखी एक कवीता यहाँ आपकी खिदमत में पेश कर रहा हुं। अच्छी लगे तो अपनीप्रतिक्रियाये जरुर देना। मुझे अच्छा लगेगा। और इससे लिखने वलेका हौसला भी बढ़ता है। आभार! )
मुझे मत सताओं ऐ दुनियावालों
मै पहले से ही बहुत परेशाँ हूँ
ज़िन्दगी से हैराँ हूँ
मुझे ही क्यों मिले है ये सारे ग़म
क्याँ अब भी बाक़ी है देना
मुझे कुछ सितम
क्याँ भर डालोगे मेरी झोली
इन गमों से
मत परेशाँ करो मूझे
ऐ दुनियावालों मै पहले से ही परेशाँ हूँ
ज़िन्दगी से हैराँ हूँ।
6 comments:
ऐ दुनियावालो मै पहले से ही परेशान हुं
जिंदगी से हैरान हुं
बहुत खूब.. प्रभू किसी लम्बी यात्रा पर निकल जाएं...
ऐ दुनियावालो मै पहले से ही परेशान हुं
जिंदगी से हैरान हुं.
bahut khoob likha hai ravi ji
शुक्रिया देव कुमारजी!!
संजयजी! जिंदगी का सत्य यही है.
मुझे मत सताओ ऐ दुनियावालो
मै पहले से ही बहुत परेशान हुं
..... Ya aadat duniya ki bahut purani hai..... Bus esse jaldi bahar nikalne mein hi bhalai hoti hai... varna log aur dukhi banane mein koi kor kasar nahi nikalte..
Haardik shubhkamnayne...
कवीताजी, शुक्रिया.
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