दोस्तों आज मै आपकी खिदमत में मैंने २९-०६-१९८३ को लिखी एक प्रेम कविता पेश कर रहा हु। आपको कैसे लगीजरुर लिखियेगा। ज़रा गौर फरमाइए जनाब...
सूरज डूबा
और एक खुबसूरत
लेकिन
सांवली रात आई।
सांवले पण से संजी
और
चाँद की मंद मंद रोशनी से नहाई
ये रात
कितनी खुबसूरत है।
वो चांदनी में चमकती घनघोर जुल्फे
वो जुल्फों में छुपी मदमस्त आँखे
वो चेहरा, खुबसूरत चेहरा,
किसी शिल्पकार के हाथों से,
कड़ी मेहनत से कुरेदकर बनाया गया
वो खुबसूरत चेहरा
जिसके गहने है
शरारती आँखे
नशीले ओंठ
सुडौल नांक
और वे जुल्फें
कितनी खुबसूरत
लग रही है
ये रात.
10 comments:
वाह ........ये सांवली कज़रारी रात बहुत खूब
धन्यवाद सुमनजी!
nice
Nice to meet you again Sumanji.
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
Dhanyavad Sanjayji.
dobara aa gaya
kai kavitaye bar bar padhna chata hoon
आपका शतशः धन्यवाद संजयजी.
bahut khoob ravindra ji!....sanwli kajrari raat!
bahut khoob ravindra ji!....sanwli kajrari raat!
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