दोस्तों आज मै यहाँ मेरी अपनी लिखी एक और कविता पेश कर रहा हु। यह कविता मैंने २३-०३-१९८२ को लिखीथी जब मै इन्दोर में इंजिनीअरिंग कोलेज में पढ़ रहा था.
"इंसा" नाम है उस पतंग का,
जो जीवन रूपी आकाश में
वक्त रूपी कच्ची डोर से बंधी हुई
विचरती रहती है।
और
जब मौत रूपी गीदड़
उस आकाश में विचरते है
तो रस्ते में आने वाले सभी पतंगों को कांट देते है
और
वो पतंग
एक कटी पतंग की तरह गिरकर
धरती की गोद में समां जाती है।
जो जीवन रूपी आकाश में
वक्त रूपी कच्ची डोर से बंधी हुई
विचरती रहती है।
और
जब मौत रूपी गीदड़
उस आकाश में विचरते है
तो रस्ते में आने वाले सभी पतंगों को कांट देते है
और
वो पतंग
एक कटी पतंग की तरह गिरकर
धरती की गोद में समां जाती है।
( रविन्द्र रवि 'कोष्टी' )
1 comment:
धन्यवाद संजयजी!
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