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September 17, 2009

बुढापा जो बरपा है.....

अभी अभी मैं नींद से जागा हूँ,

नींद में मैंने सपना देखा,

सपने में एक बड़ा सा आइना देखा
आईने में खुद को निहारते देखा
देखते ही में लडखडाया
जल्द ही खुद को संभाल न पाया
क्योकि
आईने में ख़ुद को जरुरत से ज्यादा बुढा पाया
बालो का वो सफेद रंग

मुझको बिलकुल नहीं भाया
पर क्या करू?

हालात को झूठलातो नहीं सकता
बुढापा जो बरपा है

छुपा तो नहीं सकता
खुदा ने दिया है

जीवन उसे जी भर कर तो जीना है
बुढे हुए ये सोच कर तो न मरना है
मरने की सोच आते ही

मै नींद में भी डर गया
ख़ुद संभलते संभलते ही

लड़खड़ाके गिर गया
गिरते ही नींद खुल गयी
और उठा तो सीधे कंप्युटर पे आ गया
और अपना वो सपना

ब्लॊग पर लिख गया

9 comments:

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर ।

गुलमोहर का फूल

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.
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Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

शुभकामनाएं

Yogesh Verma Swapn said...

blog jagat men swagat hai.

संजय भास्‍कर said...

अभी अभी मैं नींद से जागा हूँ,
BHAUT HI SUNDER

Creative Manch said...

आपको पढ़कर अच्छा लगा
शुभकामनाएं


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Anonymous said...

great welcome

शब्द निर्झर said...

बहुत बार समारा मन ही टाइम मशीन बनकर हमें आगे ले जाता है।वास्तववादी रचना

शब्द निर्झर said...

बहुत वास्तववादी चित्ररत।