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September 11, 2009

मृग तृष्णा


ये दुनिया नही मेला है,
मुसाफिरों का झमेला है,
यहाँ भाई, बहन, माता-पिता,
हर आदमी बस अकेला ही अकेला है
ये दुनिया नही मेला है

सबकी आखों मे एक सपना है,
ये वो और वो भी अपना है,
परन्तु मरने के बाद ,
सब साथ छोड़ देते है,
हमेशा के लिए,
ये जीवन बस मृगतृष्णा है

2 comments:

धार्मिक नास्तिक said...

This is the reality.Why to worry? Accept it. But this does not mean to hate th world.Iss duniyame aise raho ki na kisise pyar hai na khar hai(P D Mistri)

रविंद्र "रवी" said...

Thanks for comments. I will try to live as per your advice.