जिंदगी एक सागर है
हम उसकी एक गागर है
उपरवाला पैदा कर
हर क्षण इस गागर में
एक एक बूंद जीवन के टपकाता रहता है
और
जब यह गागर भर जाती है
वो उसे फोड देता है
फर्क बस इतना है दोस्तों की
कौनसी गागर कब भरनी है
और
उसे कब फोडना है
यह उपरवाले की मर्जी पर
निर्भर करता है ।
हम तो बस एक गागर भर है।
और
उसे कब फोडना है
यह उपरवाले की मर्जी पर
निर्भर करता है ।
हम तो बस एक गागर भर है।
26 comments:
बहुत सुंदर वर्णन किया हे आपने जिन्दगी का सचमुच कब किसकी गागर भर जाए कोई नही जनता , जिसदिन इंसान यह समझ लेगा उसी दिन से उसका स्वर्णिम युग शुरू हो जाएगा !
Thanks Darshanji!
gahri anubhuti...
Nice Poem!
jeevan ki sachchai yahi hai...bahut khoob ...
धन्यवाद रश्मिजी!
धन्यवाद अनुजाजी जो आप हमारे इस ब्लॉग पर पधारी!
Very nice.
shukriya punamji!
Thanks a lot shardaji!
बहुत ही अद्भुत भाव संजोय हैँ आपने रविन्द्र जी । आभार !
" देखे थे जो मैँने ख्याब..........कविता "
शुक्रिया डॉ. अशोक!!
सुंदर वर्णन
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
हमेशा की तरह दिल को छूने वाली प्रतिक्रिया है आपकी संजय जी!
गहन भावाभिव्यक्ति .....
Shukriya Monikaji!
अरे वाह एक दो दिन में झील का सागर भी हो गाय...मुझे तो आब जिंदगी एक बहुत बडा झोल लग रही है...
...शांती
बहुत सही फर्माया आपने. अगर बाढ को रोक न सके तो झील से सागर बनने मे कितनी देर लगेगी. और हा सचमुच अब जिंदगी एक बडा-सा झोल लगने लगी है.
अपना नाम तो बताईये
....... काबिलेतारीफ बेहतरीन
संजयजी,दोबारा अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया!
kya baat hai, bahut khoob.
शुक्रिया पांडेयजी!
अद्भुत जीवन दर्शन|
बधाई रवीन्द्र भाई|
शुक्रिया नवीनजी!
बहुत सुन्दर रचना है सर
वाकई अदभुद जीवन दर्शन करा दिया आप ने
जिवन इसी का नाम है दिपजी!
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