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February 8, 2011

अकेलापन


जाने किस बात की सजा देते हो मुझे ?
हे प्रभु
मैंने ऐसा क्या गुनाह किया है?
मेरे अपने क्यों मुझसे खफा है?
अब तो ये अकेलापन काटने लगा है
मुझे ऐसा लगता है
जैसे

इस धरती पर मै अकेला ही
जीव रह गया हु
अब मुझसे बर्दास्त नहीं होता
हे प्रभु
ये
अकेलापन
क्यों रूठ गयी हो तुम मुझसे
बताओ मुझे बताओ
मेरा क्या गुनाह है
इस तरह चुपचाप रहो
तुम कुछ तो कहो
मै पागल हो जाऊंगा अब
ना सताओ मुझे
हे प्रभु आप ही कुछ करो
उसे समझाओ
हे प्रभु ।

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

kaafi achhi rachna

संजय भास्‍कर said...

मैंने ऐसा क्या गुनाह किया है?
मेरे अपने क्यों मुझसे खफा है?
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!

संजय भास्‍कर said...

वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए

कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ

रविंद्र "रवी" said...

शुक्रिया रश्मिजी!

रविंद्र "रवी" said...

आभारी हू संजयजी!

रविंद्र "रवी" said...

आपको भी हमारी तरफ से ढेर सारी शुभ कामनाये संजय जी!

Vibha said...

sunder abhivyakti hai ek akela hi is dard ko achchi tarah samajh sakta hai...

Vibha said...

good

रविंद्र "रवी" said...

शुक्रिया विभाजी!

रविंद्र "रवी" said...

विभाजी, आपने हमारे यहाँ आकर कुछ पल बिताए और हमारे फोलोअर बन गए आपका तहेदिल से शुक्रिया!