मेरी अज़ब है ज़िन्दगी
किसी से क्या गिला करू ।
तक़दीर रुठ जाये तो
मेरे ख़ुदा मै क्या करु।
हालात ने नशिब ने
ग़म भर दिये है इस कदर
न मंझिलो की कुछ ख़बर
मै कारवा को क्या करू।
मिल जाये डुबने से भी आख़िर
तो एक साहील कही
तूफां की है आरज़ू
तूफां की दुआ करू
मंझिल की थी तलाश
तो गर्द ए सफ़र मिली मुझे
आँखे बरस पड़ी मेरी
काली घटा को क्या करू।
(जगजीत सिंह की एक बेहतरीन गझल)
किसी से क्या गिला करू ।
तक़दीर रुठ जाये तो
मेरे ख़ुदा मै क्या करु।
हालात ने नशिब ने
ग़म भर दिये है इस कदर
न मंझिलो की कुछ ख़बर
मै कारवा को क्या करू।
मिल जाये डुबने से भी आख़िर
तो एक साहील कही
तूफां की है आरज़ू
तूफां की दुआ करू
मंझिल की थी तलाश
तो गर्द ए सफ़र मिली मुझे
आँखे बरस पड़ी मेरी
काली घटा को क्या करू।
(जगजीत सिंह की एक बेहतरीन गझल)
6 comments:
waah
sachamuch ye ek ajab jindagi hai rashmiji!
अच्छी रचना, सारगर्भित।
शुक्रिया अरुणजी!जिन्दगी के बारे मे सोचते सोचते यह गज़ल मिल गयी सोचा बांट ली जाये!
behtareen gajal
जी हा सुमित्जी, यह एक बेहतरिन गजल है.शुक्रिय!!
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