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February 21, 2011

अजब जिन्दगी

मेरी अज़ब है ज़िन्दगी
किसी से क्या गिला करू
तक़दीर रुठ जाये तो
मेरे ख़ुदा मै क्या करु
हालात ने नशिब ने
ग़म भर दिये है इस कदर
मंझिलो की कुछ ख़बर
मै कारवा को क्या करू
मिल जाये डुबने से भी आख़िर
तो एक साहील कही
तूफां की है आरज़ू
तूफां की दुआ करू
मंझिल की थी तलाश
तो गर्द ए सफ़र मिली मुझे
आँखे बरस पड़ी मेरी
काली घटा को क्या करू।
(जगजीत सिंह की एक बेहतरीन गझल)

6 comments:

रश्मि प्रभा... said...

waah

रविंद्र "रवी" said...

sachamuch ye ek ajab jindagi hai rashmiji!

Arun sathi said...

अच्छी रचना, सारगर्भित।

रविंद्र "रवी" said...

शुक्रिया अरुणजी!जिन्दगी के बारे मे सोचते सोचते यह गज़ल मिल गयी सोचा बांट ली जाये!

sumeet "satya" said...

behtareen gajal

रविंद्र "रवी" said...

जी हा सुमित्जी, यह एक बेहतरिन गजल है.शुक्रिय!!