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November 21, 2009

खुबसूरत जिंदगी

ना कोई मूरत है,
ना कोई सूरत है,
ना कोई चाहत है,
ना कोई जरुरत है,
फिर भी ये जिंदगी
क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।
ना कोई सपना है,
ना कोई सच है,
ना कोई साथी है,
ना कोई माझी है,
फिर भी ये जिंदगी
क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

प्रशंसनीय रचना - बधाई

संजय भास्‍कर said...

फिर भी ये जिंदगी
क्यो लगती इतनी खुबसूरत है।


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

रविंद्र "रवी" said...

जिंदगी है ही इतनी खूबसूरत है संजय जी.