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January 17, 2011

नजदीक आती दुनिया

दोस्तों, एक समय था जब अमरीका, लन्दन, जापान हमारे लिए ख़्वाब-सा था. कोई सोच भी नहीं सकता था की दुनिया आज जीतनी नजदीक आ सकती है। उन दिनों कोई यदि विदेश गया तो उसके घरवाले दर जाते थे। पता नहीं वापिस आएगा या नहीं। हवाई जहाज से यात्रा करनी है। कुछ हो गया तो. लेकिन आज ऐसी हालत नहीं है। लोग एक दिन में जाकर वापस आते है। मै जब जापान गया था तब मुझे ऐसा ही दर लगा था. इसलिए मै जाते समय सभी से मिल-कर गया था. ना जाने वापिस आ सकूंगा की नहीं. हां तो मैंने सिंगापूर में देखा था की कुछ लोग मुम्बई से सिंगापूर शोपिंग करने जाते है। यह बात है १९९८ की।
आज समय बदल गया है। जब से हमारे देश में आयटी क्षेत्र का जाल फैल गया है. तब से विदेश जाना आम बात हो गयी है। बच्चे नौकरी पर लगते की विदेश जाने के ख्वाब देखते है। यही नहीं उन्हें नौकरिपर रखने से पहले पासपोर्ट होना जरुरी होता है।
यह मै लिख रहा हू क्योकि मेरा भांजा कल रूस की राजधानी मास्को गया है। लेकिन आश्चर्य की बात है की वो आय टी में नहीं है और न ही इंजिनिअर है। उसने बी ए एम एस किया है और उसके बाद एम डी कर रहा है। उसे मास्को शहर के मेडिकल कोलेज में लेक्चर देने बुलाया गया है। जहा उसे दो महीने तक अस्पताल भी चलाना है। उसने खुद ने और हम सभी ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था की उसे आयुर्वेदिक डॉक्टर बनाने के बाद विदेश जाने का मौका भी मिलेगा। इसे ही भाग्य कहते है।
उसके वहा पहुचते ही उसका मेल आया और शाम को उससे चेटिंग भी हुई। इंटरनेट ने दुनिया को बहुत ही नजदीक लाकर खड़ा कर दिया है। पता ही नहीं चलता वह इन्सान घर में है या किसी और देश में। आसानी से उससे बात हो जाती है।
१९९८ में जब मै जापान गया था मुझे याद है शिर्फ मुंबई में फोर्ट एरिया में एक सायबर केफे सुरु हुआ था। और एक घंटे का १०० रूपया लगता था। मैंने वहा १ महीने की कालावधि में नेट सिखा था।

5 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

सही कहा आपने रवीन्द्रजी ,आज हम विदेशो से दूर नही पास है ,पहले ननंद को देखे सालो हो जाया करता था जब वो नई-नई शादी कर लन्दन गई थी --पर आज हम जब इच्छा हो इंटरनेट के जरिए उससे बात भी कर लेते है और सबसे मिल भी लेते है| ऐसा लगता ही नही की वो दूर है | सचमुच, यह विज्ञानं की एक चमत्कारी भेट है |

रविंद्र "रवी" said...

दर्शनजी, सचमुच ये विज्ञान का अद्भूत चमत्कार है!

संजय भास्‍कर said...

सही कहा आपने सचमुच, यह विज्ञानं की एक चमत्कारी भेट है |

***Punam*** said...

सही कहा आपने...

विज्ञान के चमत्कार....

जिधर देखो उधर हज़ार..!!!

रविंद्र "रवी" said...

संजयजी और पूनम जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया!