( आजकल पता नहीं क्या हुआ है मुझे मै व्यंग लिखने लगा हू, ये कैसा बदल हुआ कब हुआ पता ही नहीं चला. अच्छा हुआ मेरी घरवाली यानी बीबी जी को पता नहीं चला अभी तक वरन...........खैर इस व्यंग के लिए मै अपनी बीबी से और तमाम बहनों से प्रस्तुत करने से पहले ही माफी मांग रहा हू. तो लिहिये मेरी एक और व्यंग भरी कविता.)
आज कुछ यु हुआ
कि हम सबेरे सबेरे
एक बहुत ही हसीन सपना
देख रहे थे
सपने में हमे एक हसीना मिली
हम उससे बतिया रहे थे
अचानक बीबी की खनखनखनाती आई
वो आवाज कानो से कुछ ऐसे टकराई
जैसे समुंदर किनारे
चट्टानो से समुंदर की लहरे
टकराने से आवाज आई हो।
जैसे बारिश में तुफान की आवाज आई हो
और
बौखलाहट में हम
उस हसीना को अकेले ही छोड
दूम दबाकर भाग खडे हुये।
अजी पलटकर देखने की
हिम्मत भी नही जुटा पाये हम।
भाईयो,
ऐसा क्यो होता है?
ये बीबियाँ हमेशा
गलत वक्त ही क्यो टपक पडती है?
और तो और
जागते हुए सपने देखने न दिये तो ठीक है
निंद में भी ख्वाब न देखने देती है
ये बीबियाँ
2 comments:
रविजी...
पहले तो आप सवेरे-सवेरे वाले सपने का चक्कर छोड़ दीजिये.
बीच रात वाले सपने देखना शुरू करिए तो ये देर तक चलेंगे...
फिर उसमें आने वाली हसीना से भी देर तक मुलाक़ात होगी...
और जब देर तक मुलाकात होगी तो फिर बात भी होगी ही....
वैसे आप का सपना बड़ा interesting है !!
पूनमजी, आपका आदेश सर आँखों पर. ये बस यूँ ही लिख लेते है.यह तो बस कल्पना है. आप तो बखूबी जानती है एक कवी कल्पना में ही जीता है.
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