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January 20, 2011

सबेरे का सपना

मैंने बहुत बार
ऐसा कहते सूना है लोगो को
की सवेरे देखे जाने वाले सपने
अक्सर सच होते है
जब से सूना है
तब से ही मै रोज सवेरे कोई अच्छा सा सपना देखु
ऐसा दिन में देखे सपने में सोचता हूँ
और
रोज रात बिस्तर पर लेटते ही
हसीन सपनों के ख्वाब रंगने लगता हूँ
ख्वाब के रंग में रंगते ही मुझे नींद जाती है
और रात भर नींद में ही
सवेरे कोई हसीन ख्वाब देखने के
ख्वाब देखने लगता हूँ
सुबह होते होते
एक हसीन ख्वाब दिखाई देने लगता है
ख्वाब में
किसी हसीना के हसीन पैरों की आहट सुनाई देती है
और
ख्वाब में ही मै
उसको देखने के लिए तैयार होता हूँ
पर हाय रे नशीब,
उस हसीना के पैरों की उंगली
जैसे ही दिखाई देती है
कानों में
बीबी की झंकार सुनाई देती है
और मै बौखलाकर जागृत हो जाता हूँ,
उस समय सुबह के छह बज चुके होते है
और मेरा सपना अधूरा ही रह जाता है
ऐसा अक्सर होता है दोस्तों
खैर
होनी को कौन टाल सकता है भला
तकदीर अपनी अपनी
सपने अपने अपने

15 comments:

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई

संजय भास्‍कर said...

Very impressive ....

संजय भास्‍कर said...

बहुत सशक्त -मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं

पी.एस .भाकुनी said...

पर हाय रे नशीब
उस हसीना के पैरों की उंगली
जैसे ही दिखाई देती है
कानो में
बीबी की झंकार सुनाई देती है
और मै बौखलाकर जागृत हो जाता हू........
aksar aisa hota hai...
sunder prastuti.....

दर्शन कौर धनोय said...

रविन्द्र जी ,ख्वाबो की दुनिया बहुत हसीन है ,पर वास्तविक धरातल पर ये अक्सर टूट ही जाते है, दुःख तो होगा ही ? हाय री ,किस्मत बीबी से तो निभानी ही पड़ेगी !

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

badhiyaa hai.....

***Punam*** said...

"सुन्दर सपना बीत गया....!!"

कोई बात नहीं, आज फिर संकल्प कर के सोइयेगा कि

हसीना सपने में आ जाये,

और फिर न जाये..

लेकिन एक बार बीबी से अनुमति ज़रूर ले लीजियेगा...

वर्ना सुबह की चाय नहीं मिलेगी...

रविंद्र "रवी" said...

संजय और राजीव जी धन्यवाद!

रविंद्र "रवी" said...

पुनमजी अपने तो दुखती राग पर हात रखा दिया. अब हमें ख्वाब देखना भूलना होगा.

रविंद्र "रवी" said...

भाकुनिजी आपने सही कहा अक्सर ऐसा होता है.

रविंद्र "रवी" said...

सही कहा आपने दर्शनजी मनुष्य क्या करे बिचारा, निभाना तो पडता ही है.

daanish said...

व्यंगात्मक रचना
स्वयं को पढवा ही गयी ....
किसी खूबसूरत सपने-सी
खूबसूरत कृति .

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... ख्वाब और सचाई में कितना फर्क होता है ...

रविंद्र "रवी" said...

सही कहा आपने. यह सभी की अनुभूति है.

रविंद्र "रवी" said...

दिगम्बरजी यही तो सच्चाई है!इसीलिए मैंने सभी को यह सच्चाई जताने की कोशिश की है.