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January 17, 2011

कचरा- एक सिरदर्द


आजकल शहरों की जनसँख्या दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ रही है। इस वजह से शहरों में कचरा इस कदर बढ़ रहा है की उसका आगे क्या करे यह सोच कर स्थानिक प्रशासन हैरान हो जाता है। अक्सर  यह कचरा डालने के लिए शहर के बाहर जगह बनाई जाती है। लेकिन शहर की परिसीमा बढ़ती ही जा रही है। हर साल कचरे के लिए जगह खोजना मुसीबत बन जाता है।मै आपको एक ऐसा नुस्का बताना चाहता हु जिससे आप खुश हो जायेंगे और प्रशासन को  भी थोड़ी राहत  मिल जाएगी।

हमारे घर में हर रोज जो कचरा निकलता है उस में जादातर हरी सब्जियों के डंठल, पत्ते होते है। इस कचरे को हम न फेक बारीक़ काट कर हमारे आँगन में लगे पेड पौधों को खाद के रूप में इस्तेमाल करे तो बहुत ही उपयोगी साबित होते है। मै अक्सर यही करता हू।
इसके अलावा कचरे में फलो के छिलके या फलो के टुकड़े निकलते.है जैसे केले के छिलके, चीकू, सेब, आम, पपीता इन फलो के छिलके तो बहुत ही अच्छी खाद साबित होते है। मैंने यह सब खुद किया है। मै तो करता  हू आप भी कर के देख ले और अपना शहर साफ रखने में मदद करे।
धन्यवाद!

16 comments:

पी.एस .भाकुनी said...

ismain koi sandeh nahi ki hamare gharon se niklne wala kachara aaj hamare liye hi mushibat banta jaa raha hai ,aapka sujhav uchit hai lakin kosht ji ek or mushibat hai woh hai electronic kachara jo hamare bhavishy ke liye em gambhir khatra banta jaa raha hai...bharhaal ek vicharniy post hetu abhaar .

संजय भास्‍कर said...

CHINTAJANAK STITHI HAI

दर्शन कौर धनोय said...

रवीन्द्रजी ,पहले प्याज ने रुलाया अब कचरा रुला रहा है |गृहणी होने के कारण मुझे पता हे की रोज धर मे कितना कचरा होता है |आपकी तरकीब बहुत अच्छी है --जरुर कारगर साबित होगी

Creative Manch said...

ऐसी छोटी-छोटी बातें ही हमें
अच्छा और जागरूक नागरिक बनाती हैं.
बहुत उपयोगी जानकारी
सार्थक पोस्ट
आभार

रविंद्र "रवी" said...

भाकुनिजी, आप बिलकुल सही फार्म रहे है, आज इलेक्ट्रोनिक कचरा एक बहुत ही बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है. इसके बारे में मै एक पोस्ट लिखने की सोच रहा हू. जल्द ही आपको पढने को मिलेगी. धन्यवाद!

रविंद्र "रवी" said...

संजयजी, बहुत ही चिंताजनक स्थिति है!

रविंद्र "रवी" said...

दर्शन कौरजी, अभी और भी रोना बाकि है. मेरी कचरेवाली तरकीब जरुर अपनाइयेगा!

रविंद्र "रवी" said...

आभार क्रिएटिव मंच!

सुज्ञ said...

पर्यावरण पर आपकी चिंता, एक जाग्रति-प्रेरक है।

अभिनन्दन!!

ZEAL said...

आपका सुझाव बहुत पसंद आया।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

रवीन्द्र भाई पड़े ही पते की बात कही है आपने| धन्यवाद|

दिगम्बर नासवा said...

Uttam baat ... agar sabhi aisi baaton ka khyaal rakkhen to ye samasya kaafi had tak theek ho sakti hai ...

रविंद्र "रवी" said...

धन्यवाद डॉ.साहिबा,अब देरी न करे और अपनो को भी यह सुझाव सुझाये.

रविंद्र "रवी" said...

हंसराजजी मी यही जागृती लाना चाहता हू!

रविंद्र "रवी" said...

नवीन जी मी हमेशासे ही इसी तऱ्ह पते की बात कहने की कोशिश करता रहता हू.परंतु आप जैसे 'सुज्ञ'ही उस बात को समझ सकते है. आभारी हू.

रविंद्र "रवी" said...

बिलकुल सही फरमाया आपने दिगंबर जी, बस अब जूट जाईये और यह बात अपने दोस्तो रीस्तेदारो को भी समझाईये.