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July 16, 2010

सपनों की परी

सपनो की परी
कल रात मैने देखा एक सपना,
तब मैने पाया वहा कोई नही है अपना.
मगर अचानक, मेरे पास एक परी आई
लहराती जुल्फे, झील सी गहरी आंखे
और
मदमस्त निगाहे मैने अपनी ओर ही पायी.
सोच रहा था मै कौन है ये हसीना?
सोचते सोचते ही छुट गया मुझको पसीना!
और नजदीक आयी तो धुंदला सा चेहरा मुझे नजर आया,
क्या बताऊ मै मैने सपने मे तुम्ही को पाया.
तुम हो की मेरे दिल-ओ-दिमाग पे छायी हुई हो,
लेकिन जब से तुम पराई हुई हो,
मेरा दिल इस बात को मानने को तैयार ही नही
बहुत समझाता हु उसे मगर वो समझता ही नही
समझता ही नहीसमझता ही नही.

5 comments:

Aruna Kapoor said...

मनोभावों का सुंदर चित्र!...सुंदर शब्दों में अभिव्यक्ति!

रविंद्र "रवी" said...

सराहना के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया अरुणाजी!

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

रविंद्र "रवी" said...

धन्यवाद संजयजी

Anonymous said...

bahut acha laga, shukriya...

Meri nayi kavita : Tera saath hi bada pyara hai..(तेरा साथ ही बड़ा प्यारा है ..)

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