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July 1, 2010

तारे जमी पर




जब तुम आती हो जाने मन मेरे द्वारे
बहारे खिल उठती है
फूल अपनी महक बिखुरते है
तारे ज़मी पर आ जाते है
और अचानक मेरे आंगन में
चाँद उतर आता है।
मानो
मुझसे मुस्कराते हुए कह रहा हो,
मेरे दोस्त,
तुम खुशनसीब हो
तुम्हे इतना खुबसूरत साथी
जो मिला है,
मै तो बदनसीब हु
मुझे तो हमेशा रजनी के साथ ही रहना होता है।
रजनी,
जिसके आते ही
चारो तरफ अँधेरा छा जाता है
और उस अँधेरे को
अपनी खूबसूरती से
मै दूर करने की कोशिश करता हु,
मेरे साथी आसमान से
चार चाँद लगाने की कोशिश करते है,
मगर वो ( तारे) ज़मी पर उतर नहीं पाते.

4 comments:

Aruna Kapoor said...

कल्पना का एक अदभूत चित्रण पेश किया है आपने!... धन्यवाद!

रविंद्र "रवी" said...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपने हमारे ब्लोग पार आकर कुछ पाल बिताये. धन्यवाद!

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

रविंद्र "रवी" said...

संजयजी. शुक्रिया!!!