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August 13, 2011

रजनी पती

हे चांद,
किसके  गम में जिता ही तू 
क्यो जागता रहता है तू रात भर
कौन है वो बदनशिब
जिसने तुझे  भुला दिया है
जानता हु मै, 
तुझमे दाग है न,
तेरी खुबसुरती मे दाग है
पर क्या हुआ
हर एक पर दाग होता ही है
ऐसा है कोई जिस पर कोई दाग न हो?
कोई है जिसमे खोट न हो?
नही शायद नही
फिर क्यो ऐसा क्यो?
तेरी इतनी सी खोट का इतना बडा जुल्म
कितना गम मिला है तुझे?
फिर भी तु  खुश रहता है
रातो मे करवटे बदलता है
और अंत मे सो जाता है
एक दिन वो भी आता है
जब रात भर जागता है तु
कतल की रात होती वो
हे रजनी पती
अरे हा
कही वो बेवफा रजनी तो नही?
जो तुझे छोड गयी है!
हां, ऐसा ही लगता मुझे
हा वही है वो बेवफा
कितनी दुर चली गयी है वो
तु कहा आकाशलोक मे
वो कहा धरती पर
फिर दोनो का मिलन कैसे होगा?
असम्भव है यह
अब ऐसा नही होगा
तुम दोनो कभी नही मिलोगे
केवल ताकते रहोगे एक दुसरे को जोवन भर
तु वहा से देखना
रजनी यहा से देखेगी
तेरी दुनिया मे सब सो जाते है
तारे झिलमिलाते है
पर तु तब भी जागता रहता है
मुहब्बत के मारो पर हमेशा जुल्म होता है
बेचारो को गम के शिवा मिलता ही क्या है?
हे रजनीपती

(रविन्द्र रवि)


August 4, 2011

हम तुम................

मै बाहो मे था तुम्हारी
तुम मेरी बाहो मे थी
मै खोया था तुम मे
तुम मुझ मे खोयी थी 
उलझी हुई  लटे तुम्हारी 
सुलझा रहे थे मेरे हाथ
दिल दिमाग आंखे
सभी खामोश थे पाकर तुम्हारा साथ
मै सपनो मे तुम सपनो मे
मै तुम मे तुम थी मुझमे
खोये खोये थे आपस मे 
हम तुम.
( दोस्तो यह प्रेम कविता मैने ६/११/१९८० को लिखी)