shi hai sir aaj kiske paas nili syahi hai aur na wo klm hai .pr lkhne ki himmat to aaj bhi baki hai.asal me likhne walo ne hi kajaz aurt klam se rista toda hai.likhne se nhi wo to aaj bhi likhte hai bs zriya bdl gya .
पुनमजी,मै अपने आपको खुशनशीब मानता हू की आपने हमारे ब्लॉग पर अभी अभी visit करना सुरु किया है जबकि हम कई समय पहले से आपके follower है. आपकी एक बात हमें बहुत उम्दा लगी की आपने कविता का जवाब कविता में ही दिया. वो भी बहुत ही अच्छे शब्दों में. तहेदिल से धन्यवाद!
10 comments:
dukhad sachchaee hai ye.
Thanks Mridulaji.
सच्चाई को कबिता क़ा रूप दिया
सुन्दर कबिता
धन्यवाद सूबेदारजी.
shi hai sir aaj kiske paas nili syahi hai aur na wo klm hai .pr lkhne ki himmat to aaj bhi baki hai.asal me likhne walo ne hi kajaz aurt klam se rista toda hai.likhne se nhi wo to aaj bhi likhte hai bs zriya bdl gya .
हम आपके शुक्रगुजार है गुलझार साहब!
"कुछ पल" में अधिक बल मेहसूस हुआ।आभार!
धन्यवाद अरुणजी! भगवान ने चाहा और आपकी शुभ कामनाये हमारे साथ हो तो और भी बलशाली होगा 'कुछ पल'
वाकई में सारा कागज गुम हो गया कहीं
और वो लाल नीली इंक भी सूख गई..
कलम भी गायब हो गए कहीं,
बचे हैं तो डोट-पेन और जेल-पेन..
अब इंक भरें भी तो किसमें?
लिखें कहाँ? और पढ़ेगा kaun ?
अब तो ब्लॉग का ज़माना है..
पर मरी उंगलियाँ की-बोर्ड पर उतनी फास्ट नहीं चलती..
जितना की पेन पकड़ कर कागज पर दौड़ जाती हैं.....
धन्यवाद इतना उम्दा लिखने के लिए..
मैंने अभी अभी ब्लॉग visit करना शुरू किया है
थोडा आराम से देखती हूँ समय-समय पर..सारी रचनाएँ खूबसूरत है
शुक्रिया......
पुनमजी,मै अपने आपको खुशनशीब मानता हू की आपने हमारे ब्लॉग पर अभी अभी visit करना सुरु किया है जबकि हम कई समय पहले से आपके follower है.
आपकी एक बात हमें बहुत उम्दा लगी की आपने कविता का जवाब कविता में ही दिया. वो भी बहुत ही अच्छे शब्दों में. तहेदिल से धन्यवाद!
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