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September 23, 2020

कर्म

जिंदगी का एहसास

September 11, 2020

अदृश्य मदद

(दोस्तों, व्हाट्सएप की शाला में एक भावना प्रधान संदेश प्राप्त हुआ. मन को इतना भा गया की अपने आपको रोक न पाया। जरूर पढे)
मैं पैदल घर आ रहा था । रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था । पास जाकर देखा, लिखा था:   

कृपया पढ़ें

"इस रास्ते पर मैंने कल एक 50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...

यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक घऱ था । वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।

"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ 50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"

यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।

"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, । ठीक से दिखाई नहीं देता । पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिख गया है ।"

बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा ।जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..
परमात्मा और अपनी अंतरआत्मा..!! मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया । जिसने इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई । और मैंने भी उस कागज को फाड़ा नहीं ।मदद के तरीके कई हैं सिर्फ कर्म करने की तीव्र इच्छा मन मॆ होनी चाहिए
🌿
                 *कुछ नेकियाँ*
                    *और*

                *कुछ अच्छाइयां..*

  *अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,* 

          *जिनका ईश्वर के सिवाय..* 

          *कोई और गवाह ना हो...!!*🙏🌹🙏

Good Evening ❤️

September 9, 2020

इज़हार.....

तुम आती हो,
साथ खुशियों की हजारोंं
लहरें लेकर,
हर लहर के संग 
उडने को मन करता हैं।
खुशियों के गुब्बारे 
आसमाँ में उडने लगते हैं,
बस 
इज़हार करने से डर लगता है।

रविंद्र "रवी" कोष्टी

September 8, 2020

होमाफिस

दोस्तों इन दिनों हम जिंदगी के कुछ अजिब दौर से गुजर रहे है। ऐसा लगता है जैसे एक गहरी सुरंग से यह जिंदगी गुजर रही है। मार्च २०२० से कोरोना ने सारी  दुनिया में कहर कर रखा है. सारी  दुनिया ही इससे परेशान है. कोई इलाज नही, कोई भी दवाई नहीं ऐसी इस  अजीब बीमारी ने इस दुनिया को त्रस्त  कर के रखा है. पुर ५ महीने हो गए है. आगे भी कब तक यह बीमारी चलने वाली है कोई नहीं बोल सकता.
लेकिन एक बात ध्यान देने लायक है. इसमें आय.टी क्षेत्र के ही  ऐसे लोग है जिनको लोक डाउन और इस बीमारी का कोई खास असर नहीं पड़ा है. क्यों की सॉफ्टवेयर पर कही भी बैठकर काम किया जा सकता है. आपके पास बस एक लेपटॉप और इंटरनेट चाहिए। सफर में भी आप काम कर सकते है. इतना ही नहीं दुनिया के किसी भी कोने में आप हो तो भी आप काम कर सकते है. यही इस नौकरी की खाशियत है. इसलिए जब से लॉक डाउन हुआ है आय टी वाले घर बैठकर ही काम कर रहे है. घर जैसे ऑफिस हो गया हो. इसलिए मैंने घर को घर नहीं अब होमाफिश कहना बेहतर समझा है.
एक बात लेकिन खटकती है. घर में ऑफिस जैसी शांति का माहौल बनाना पड़ता है. क्योकि उन लोगो की ऑनलाइन मीटिंग होती रहती है. इसलिए घर में कोई आवाज नहीं कर सकता. ना गाना गाना . ना गुनगुनानाना. बस मुँह पर हाथ रख के चुपचाप बैठे रहना. टी व्ही नहीं, ना समाचार देखो ना सीरियल. इंसान करे तो क्या करे भाई? पागल ही होगा और क्या? कौन बोला भाई? अरे ये तो मेरा अपना दिल ही बोल रहा है.  इस मोबाईल बनानेवाले का तहेदिल से शु क्रिया अदा  करना चाहिए. अच्छा हुआ उसने यह अविष्कार दुनिया को दिया. काम से काम हम बूढ़े लोगो के काम तो आया. किताबे बहुत है घर में. लेकिन जब से स्मार्ट मोबाईल आया है तब से कोई भी किताब पढ़ना पसंद नहीं करता. अजी हाथ भी नहीं लगता कोई. चलो छोड़ो.
बच्चे जो आय टी में है एक कमरा अड़का के बैठ जाते है पूरा दिन. उस कमरे में दूसरे सभी को प्रवेश बंद रहता है . सिर्फ माँ को परमिशन रहती है. माँ चाय देना, माँ पानी देना, माँ खाना देना, फिर दोपहर की चाय फिर रात का खाना. और दिनभर बेचारे काम करा के थक जाते है इसलिए माँ रात में कोई काम नहीं बताती. बाप बेचारा पुरादिन काम करता रहता है. इस बुढ़ापे में लेकिन थकता नहीं. अजी थकता हो तो भी कौन सुननने वाला बाकि है इस दुनिया में..  एक माँ ही होती. जिसे अपना  दुखडा सूना पाते थे. वो भी चली गयी. अब बस अकेले ही बतियाते रहो. कोई सुनाने वाला बचा ही नहीं. घरवाली तो सुनाने से रही. बतियाने के लिए मुँह खोला नहीं की चल देती है. वो शब्द मुँह में ही अटक के रह जाते है. बेचारे. पैदा होने से पहले की मर जाते है.
अच्छा इस कोरोना से पहले किसी बहाने बाहर घूमने या कहे कुछ खरीदने निकल पड़ते थे. पर इस लोक डाउन ने नहीं नहीं इस कोरोना ने वो रास्ता भी बंद कर दिया है. और उसे देखो तो. वो खुले आम दुनिया में घूम रहा है. कोई रोकटोक नहीं. किस की हिम्मत है जो उस बन्दे को रोक सके. अजी उससे फासला जो बनाना होता है. यदि कोई नजदीक आ भी जाये तो वही कह देता है की "कॄपया सामाजिक दुरी बना के रखिये. सरकारी नियमो का पालन करिये." बेचारे सभी दूर भाग जाते है.
इस लॉक डाउन सब से बुरा असर किसी पर पड़ा है ऐसा बोले तो वो बूढ़ो  पर पड़ा है. क्यों की घर में २४ घंटे रहो तो घर वालो को बोझ लगते है. बहार निकालो तो कोरोना दबोचने के लिए तत्पर रहता है. बेचारे बूढ़े लोग जाए तो कहाँ  जाए.