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April 3, 2011

भारत - विश्व कप २०११ चेम्पियन



भारत - विश्व कप २०११ चेम्पियन बन गया।
धोनी की सूझ बुझ काम आई। धोनी ने दुनिया को दिखा दिया की शांति और सूझ बुझ से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
धोनी और इंडियन टीम को और सभी भारतवाशियों को बधाई।

7 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

aapko bhi badhaai ho !

Vivek Jain said...

Congratulations!

Vivek Jain http://vivj2000.blogspot.com

Vijuy Ronjan said...

badhayi ho badhayi,
Bharat ne apni dhaak jamayi,
Dhoni ki sena ne mil ke dekho,
Srilanka ko dhool chatayi.
sab mil kar khele sundar khel,
Poore desh mein khushiyan chhayee.

आकाश सिंह said...

HARDIK BADHAI HO........
यहाँ भी आयें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com

रविंद्र "रवी" said...

दर्शनजी, विवेकजी, विजयजी और आकाशजी आपका बहुत धन्यवाद!!!!!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

और हम जीत गए.....
टीम इंडिया बधाई हो, धोनी सेना की जय, सचिन की जय, युवराज,गंभीर,सहवाग,जहीर आपकी भी जय हो। मेरा मानना है कि क्रिकेट का खेल एक टीम अफर्ट है और हमारी टीम ने "शानदार जीत" हासिल की, चलिए आपको आपत्ति है तो "शानदार" हटा देते हैं लेकिन जीत तो हासिल की है ना, वर्ल्ड कप तो हमारे खिलाड़ियों के हाथ में ही है। इस जीत की खुशी पूरा देश मना रहा है, और वो खबरिया चैनल भी इस टीम की वाहवाही में करने से पीछे नहीं हैं, जो दिन भर पानी पी पी कर टीम और धोनी की कप्तानी को कोसते रहे।

चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं.टीम चुने जाने के बाद सबसे पहले आलोचना ये हुई कि इसमें एक ही विकेट कीपर है धोनी, और धोनी को कुछ हो गया तो क्या होगा ? दूसरा सवाल उठाया गया पियूष चावला क्यों हैं इस टीम में ? टीम में दोस्ती नहीं निभाई जानी चाहिए। दोपहर में टीम चुने जाने के बाद शाम तक खबरिया चैनलों के पास इतना मसाला जुट गया कि वो एक ठोस नतीजे पर पहुंच गए और शाम होते होते अपने प्राइम टाइम बुलेटिन में ऐलान किया कि ये टीम "वर्ल्डकप" जीत ही नहीं सकती।

बहरहाल पहले अभ्यास मैच में टीम इंडिया का प्रदर्शन धमाकेदार रहा, जिस पियूष चावला का लोग बाजा बजा रहे थे, उसने अपने प्रदर्शन से आलोचकों को जवाब दिया, और आस्ट्रेलिया को इस टीम ने अभ्यास मैच में करारी शिकस्त दी। हां लेकिन उद्घाटन मैच में बांग्लादेश से हम भले जीत गए, लेकिन बांग्लादेश से ही जीतने में टीम इंडिया का पसीना छूट गया। हमारे क्रिकेट के जानकारों की तो जैसे बांछें खिल गईं, उन्हें लगा कि जो बात वो पहले से कहते आएं हैं वो सच साबित हो रहा है। लोगों ने धोनी के खिलाफ धार और तेज कर दी। इंग्लैड के खिलाफ 338 रन बनाने के बाद भी जब मैच बराबरी पर छूटा तो गेंदबाजी से ज्यादा धोनी की कप्तानी पर सवाल खड़े किए गए। कई चैनलों पर बैठे जानकारों ने तो यहां तक कह दिया कि धोनी हारने की जिद्द कर रहे हैं।

विशेषज्ञों ने मैच के दौरान धोनी के खिलाफ इतना शोर शराबा किया कि हालत ये हो गई बीसीसीआई को हस्तक्षेप करना पड़ा और एक दिन होटल में बुलाकर धोनी की क्लास लगाई गई। उनसे पूछा गया कि आखिर वो आश्विन को क्यों नहीं खिला रहे हैं, जिस तरह से देश भर में माहौल बनाया गया, एक बार तो लगा कि आर अश्विन से धोनी की कोई निजी खुन्नस है। यही वजह है कि उन्हें प्लेइंग इलेवन से दूर रखा जा रहा है। बहरहाल बीसीसीआई के हस्तेक्षेप के बाद अश्विन को एक दो मैच मिल गए, अश्विन ने साबित भी किया कि उनका चयन गलत नहीं है।

लीग मैच में हमने ऐसा प्रदर्शन किया था कि हम क्वार्टर फाइनल में आसानी से पहुंच जाते, लेकिन आखिरी वक्त पर जिस तरह से बांग्लादेश के खिलाड़ियों ने कम बैक किया, उससे भारत,वेस्टइंडीज और इंग्लैड की सांसे फूलने लगीं। लेकिन वो कुछ ऐसा नहीं कर पाए और हम अपनी मंजिल की ओर बढ गए।

क्वार्टर फाइनल आस्ट्रेलिया से और सेमीफाइनल पाकिस्तान से होना था। सच बताएं तो टीवी के जानकारों को भी उम्मीद नहीं थी कि इन दोनों मैचों को हम आसानी से पार कर लेगें। लोग यही कहते रहे कि हमारा सफर अहमदाबाद में खत्म होगा, अगर किसी तरह हम मोहाली पहुंच भी गए तो मुंबई तो कत्तई नहीं, लेकिन हमने मोहाली भी जीता और मुंबई भी।

अब बड़ा सवाल फिर वही कि क्या वाकई ये टीम वर्ल्डकप की हकदार थी, जिस टीम में आखिरी समय तक प्रयोग चलता रहा कि जहीर के साथ गेंदबाजी की शुरुआत कौन करेगा। अभ्यास मैच से लेकर फाइनल तक ये जोड़ी तय ही नहीं हो सकी। बल्लेबाजी के क्रम में लगातार छेड़छाड़ की जाती रही, किस खिलाड़ी का क्या रोल है, उन्हें पता नहीं। पावर प्ले कब लेना है और पावर प्ले का फायदा कैसे उठाना है, आखिर तक टीम को यही समझाने में लोग लगे रहे। पूरे टूर्नामेंट के दौरान कभी लगा ही नहीं ये एक टीम है, जिसमें सबको अपनी अपनी जिम्मेदारी का अहसास है। मैच के दौरान लगा कि सभी खिलाड़ी किसी जल्दबाजी है, ये जो कर रहे हैं उससे भी बड़ा कोई काम उनका इंतजार कर रहा है और उनके बिना वो बड़ा काम पूरा नहीं हो सकता।

इन हालातों में अगर हम कहते हैं कि जीत के पीछे भगवान का आशीर्वाद रहा है तो क्या गलत कह रहा हूं। पुराने क्रिकेटर गलत साबित हुए, खबरिया चैनल पूरी तरह गलत निकले, कप्तान की कप्तानी रंग नहीं जमा पाई, ज्यादातर खिलाड़ियों का प्रदर्शन निराश करने वाला था। इसके बाद भी अगर हमारे हाथ में वर्ल्डकप है तो आप कह सकते हैं कि यहां सब भले हार गए हों, लेकिन क्रिकेट की जीत हुई है, खेल की जीत हुई है। खैर.. जब सब लोग खामियां भूल कर टीम इंडिया की तारीफों के पुल बांध रहे हैं तो हम क्यों दुश्मन बनें... टीम इंडिया जिंदाबाद।

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

aapne bharat ke jit ke sandarbh me sahi evm satik tppni ki hai.