ज़िंदगी ने क्या दिया मुझे
सोच परेशा हुआ जब मै
पीछे मुड़ के देखा मैंने
तो पाया,
उस राह पर,
जिस पर चल के मै
यहाँ तलक आया हूँ
सिर्फ काँटे ही बिखरे पड़े दिखाई दिए।
मैं निराश हुआ।
दुसरे ही पल
मेरी निगाहे
उस राह के दोनों तरफ बिखरी
हरियाली पर पड़ी
तब मैंने पाया
इन्ही काँटो पे चलने पर
आँखों ने जो बहाए थे आँसू
शायद
उन्ही आँसुओ से सिंच कर,
उस राह के दोनों तरफ,
जिस पर चल मैं
यहाँ तलक पंहुचा हु,
हरियाली गहराई होगी
इससे मुझे सुकूँ मिला
और
जिन्दगी से था जो गिला
वो दिल से दूर हो चला
पाया मैंने
और आज की ज़िंदगी को
चाहे पगडंडी पर कितने भी काँटे
क्यों न हो
खुशहाल पाया मैंने।
सोच परेशा हुआ जब मै
पीछे मुड़ के देखा मैंने
तो पाया,
उस राह पर,
जिस पर चल के मै
यहाँ तलक आया हूँ
सिर्फ काँटे ही बिखरे पड़े दिखाई दिए।
मैं निराश हुआ।
दुसरे ही पल
मेरी निगाहे
उस राह के दोनों तरफ बिखरी
हरियाली पर पड़ी
तब मैंने पाया
इन्ही काँटो पे चलने पर
आँखों ने जो बहाए थे आँसू
शायद
उन्ही आँसुओ से सिंच कर,
उस राह के दोनों तरफ,
जिस पर चल मैं
यहाँ तलक पंहुचा हु,
हरियाली गहराई होगी
इससे मुझे सुकूँ मिला
और
जिन्दगी से था जो गिला
वो दिल से दूर हो चला
पाया मैंने
और आज की ज़िंदगी को
चाहे पगडंडी पर कितने भी काँटे
क्यों न हो
खुशहाल पाया मैंने।
( इमेज: गूगल इमेज से)
20 comments:
सुंदर कविता रवीन्द्र जी| प्रस्तुत कविता मानव मनोभावों को सफलता से व्यक्त करती है| बधाई|
pl visit at http://samasyapoorti.blogspot.com
रविन्द्रजी,
यथार्थ की गहराई लिये हुए इस श्रेष्ठ कविता
की प्रस्तुति के लिये बधाई !
सादर,
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.
व्यक्ति का जीवन दर्शन ही उसके व्यक्तित्व का परिचायक होता है.
और उस व्यक्ति का दुःख सुख भी उसी पर निर्भर करता है.
आपका जीवन दर्शन अच्छा लगा.
सुंदर कविता. सुंदर भाव.
bahut sunder likha hai
ज़िंदगी ने क्या दिया मुझे
सोच परेशा हुआ जब मै
पीछे मुड़ के देखा मैंने
तो पाया,
उस राह पर,
जिस पर चल के मै
यहाँ तलक आया हूँ
सिर्फ काँटे ही बिखरे पड़े दिखाई दिए
विशाल जी बहुत ही प्यारी रचना जिसने जिन्दगी को जीना सिखा दिया
बहुत सुन्दर अति सुन्दर उम्दा
achhi kavit hi ravindra ji
vstvikta hai aap ke kavita me
bhut sundar
हमारी जिंदगी में हमेशा दो पहलू आते हैं...लेकिन हम हमेशा एक ही पहलू को देखते हैं
और अपना दुखड़ा रोते रहते हैं अपने आप से..और दूसरों के सामने भी...
ज़िन्दगी का दूसरा पहलू भी खूबसूरत हो सकता है..
लेकिन हम नज़र ही नहीं डालते उस तरफ..बस एक का ही रोना रोये जाते हैं..
आपका नजरिया एकदम सही है.......जीवन में हरियाली लाने के लिए बधाई हो...
भले ही वो आंसुओं से आई हो !!
नविनजी, विनयजी, विशाल,लिनाजी, रोशीजी, अरीबा और दिपजी आप सभी का शुक्रिया!
पुनमजी, आप शायद गलत समझ रही है. मेरा कविता लिखने का तरिका अलग है. मै जीवन के हर पहलु मे घुस कर वैसा महसुस कर कविता लिखता हु. कुछ कविताये तो मैने उस समय लिखी थी जब मै स्कुल-कोलेज मे था और मेरी शादी भी नही हुई थी. उस समय मैने एक पिता का बेटी के जाने का गम कैसा हो सकत है यह महसुस कर कविता लिखी थी. प्यार की कविताये तो मैने बिना प्यार किये ही लिखी थी.इसलिये मै यहा अपना दुखडा ले बैठा हु ऐसा न समझे. शब्दो की गहराई को समझे.धन्यवाद!!!!!!!
धन्यवाद, सारा सच! मै जितनी हो सके कोशिश करता हू और औरो का हौसला बढाता हू.
Bahut sunder avum sandeshprad rachna.
shubhkamnayen.
धन्यवाद, प्रितीजी!
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
धन्यवाद!
Behtreen prastuti!!!!!!liked it very much.
शुक्रिया प्रार्थनाजी!आपका स्वागत है. कृपया पुनःह पधारे!
ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं को याद दिला दिया आपकी कविता ने, जीसी मैंने जीवन में गौर तो नहीं पर महसूर ज़रूर किया ,
धन्यवाद महोदय
ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं को याद दिला दिया आपकी कविता ने, जीसी मैंने जीवन में गौर तो नहीं पर महसूर ज़रूर किया , धन्यवाद महोदय
ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं को याद दिला दिया आपकी कविता ने, जीसी मैंने जीवन में गौर तो नहीं पर महसूर ज़रूर किया , धन्यवाद महोदय
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