आयुष अपनी स्कुल से घर आ रहा था। रास्ते में उसे एक अंकल मिले। उन्होंने उसे कहा बेटा तुम घर जा रहे हो तो ज़रा यह सामान आंटी को दे देना। आयुष ने वह थैला ले लिया और घर की तरफ चलता बना। रास्ते में एक दरिया लगता है। उसे पार किये बगैर वह घर नहीं जा सकता था। सामान उठा कर वह थक गया था। इसलिए कुछ पल दरिया किनारे बैठ कर सोच रहा था। इतने में उसके बाबूजी वहा से घर जाने लगे। उन्होंने उसे वहा बैठा देखा और घबरा गए। उससे पूछा और घर चलो कहा। वह उठा और अपने बाबूजी के पीछे चल दिया। अचानक उसे क्या हुआ पता नहीं। उसने वह सामान दरिया में फेक दिया।
बाबूजी ने पलट पूछा बेटा वह झोला काहे फेका?
पिताजी आज ही हमें स्कुल में पढ़ाया गया की नेकी कर और दरिया में डाल।
तो
मैंने अंकल का सामान लाया मतलब नेकी की और यहाँ दरिया दिखाई दिया सो उस नेकी को दरिया में फेक दिया। क्या गलत किया मैंने।
बाबूजी ने अपना शिर पकड़ लिया।
13 comments:
....आयुष ने नेकी और दरिया दोनों को अलग ही रखा...हा, हा, हा!
jab kisi baat kee agyanta rahti hai to aisa hi hota hai... ganimat hai saaman hi fenka....
शुक्रिया डॊ.साहिबा. वो आयुष बच्चा है ना-समझ है.
कविताजी शुक्रिया.ऐशि गल्तिया बच्चो से होती ही है.
mazedaar !
aap hamare blog par aaye bahut hi hardik khushi huyi tahedil se dhanyabad ! aap bahut achchhe likhate hai parha mn aalhadit huaa
is nachij ka hardik namaskar kabul kijiye aapke likhane ka andaj wastaw me mast mast hai thandi, madamati mastani hawao ka jhoka hai
arganik bhagyoday.blogspot.com
Dear Sir/Mam
Please Read & Poll Ur Vote.
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and give your valuable comment.
Thanks
हा, हा, हा, हा अति सुन्दर प्रस्तुति.....बधाई।
सद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी
हा, हा, हा, हा अति सुन्दर प्रस्तुति.....बधाई।
सद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी
हा, हा, हा, हा अति सुन्दर प्रस्तुति.....बधाई।
सद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी
mazedaar ! i have bookmarked this..
आप सभी का मै शुक्रगुजार हू. आपने अपना बहुमूल्य समय निकलकर मेरे ब्लॉग पर आ कुछ पल बिताए और सुन्दरसे दो शब्दों में प्रतिक्रिया दी. धन्यवाद!
aaj ke jamane ka muhavara bilkul satya hai.
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