रवि,
नहीं रवि नहीं
मै तुम्हे नहीं भूल सकती
कैसे भूलू?
मेरे ख्वाबो में तुम हो
खयालो में तुम हो
फिजाओ में तुम हो
फिर कैसे भूलू मै तुम्हे
कैसे?
बताओ?
जब मै बाग में फूल को खिलते देखती हु
सहसा एक भोरा फूल पर आकर बैठ जाता है
मुझे लगता है
तुम मुझसे मिलने आये हो
तुम्हारे पंख है
तुम उड़ रहे हो.
तो ये मेरा ख्वाब ही है?
सहसा मेरी आखों से आंसू छलक जाते है
देखो रवि!
देखो,
इन आंसुओ को देखो,
एक एक बूंद में
प्यार है तुम्हारे लिए,
गम है तुम्हारे बिछुड़ने का उन्हें,
जी चाहता है
इन आंसुओ की माला बनाकर
तुम्हारे गले में डालकर
तुम्हे वर लूँ मै.
अरे! इसकी भी क्या जरुरत है,
मैंने तो तुम्हे
मेरा सब कुछ मान ही लिया है
रवि!
अब मै जी नहीं सकती
मै आत्महत्या करुँगी
जरुर करुँगी आत्महत्या,
मुझे कोई नहीं रोकेगा
मेरा रहा ही क्या है इस दुनिया में
रवि!
तुम्हारा दिल पत्थर का कैसे हो गया?
कहा है तुम्हारे वाडे?
कहा है वो कसमे?
मुकर गए ना अपनी कसमो से,
मुझे मालूम था,
लेकिन नालायक दिल मन ही नहीं,
ठीक है रवि,
एक बार
अंतिम बार,
गले तो लगा लो मुझे
इस दिल की धडकनों को
मिला लो अपने दिल में,
बढ़ जाएगी तुम्हारी उम्र
मेरी उम्र भी तुम्हे लग जाएगी,
ले लो रवि,
ले लो इनको
ले लो इन धडकनों को
मुझे अब जीना नहीं है,
ठहरो,
कहा जा रहे हो?
अभी बाते ख़त्म नहीं हुई है,
आज अंतिम बार तो बोलने दो मुझे
डर रहे हो मुझसे
अपनी सब कुछ होते हुए भी,
मुझे पाव तो छु लेने दो
अंतिम बार
बस एक बार
आशीर्वाद दे दो मुझे
शांति तो मिलेगी इस आत्मा को,
तद्पेगी तो नहीं.
अच्छा रवि,
अब मै जाती हु
तुम भी जाओ
रवि,
मै चलती हु
जाओ जाओ
बेवफा जाओ!
रवि।
(दोस्तों यह कविता मैंने ८/२/१९८० को लिखी थी जब मै इंजिनीअरिंग में पढ़ता था। इसमे कोई सचाई नहीं सिर्फएक विरह की कविता है। कोई चाहिए इसलिए अपना ही नाम लिख दिया था। यह एक काल्पनिक कविता है बस!)
2 comments:
अब मै जी नहीं सकती
मै आत्महत्या करुँगी
जरुर करुँगी आत्महत्या,
मुझे कोई नहीं रोकेगा
मेरा रहा ही क्या है इस दुनिया में
रवि!
तुम्हारा दिल पत्थर का कैसे हो गया?
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
धन्यवाद संजय जी.
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