एक दोस्त दुसरे से बोला, " हमारा देश हजारो साल पहले से सोने की चिडिया कहलाता था. लेकिन आज नही. वो फिरंगी सब कुछ लुट ले गये शायद."
" हा यार शायद, पर मेरा मन मानता ही नही."
"ऐसा क्यो? क्या कहता है तेरा मन?"
" मुझे लगता है हमारे पूर्वज इतने मुर्ख नही होंगे की वो फिरंगीयो को सब लुटने देते. सब पुर्वजो ने ज्यादा से ज्यादा सोना और जवाहरात जमीन में गाड कर रखे होंगे."
" तु सही कह रहा है यार! इसका मतलब सारा देश सोने की मिट्टी पर बसा है?"
" अरे सोच द्वारका समुद्र में डूब गयी थी. और श्रीकृष्णजी के समय में कितना सोना होता होगा. वो सब कहा गया?"
"हा यार समुंदर में भी सोना हो सकता है."
" ............................"
"..............................."
" हा यार शायद, पर मेरा मन मानता ही नही."
"ऐसा क्यो? क्या कहता है तेरा मन?"
" मुझे लगता है हमारे पूर्वज इतने मुर्ख नही होंगे की वो फिरंगीयो को सब लुटने देते. सब पुर्वजो ने ज्यादा से ज्यादा सोना और जवाहरात जमीन में गाड कर रखे होंगे."
" तु सही कह रहा है यार! इसका मतलब सारा देश सोने की मिट्टी पर बसा है?"
" अरे सोच द्वारका समुद्र में डूब गयी थी. और श्रीकृष्णजी के समय में कितना सोना होता होगा. वो सब कहा गया?"
"हा यार समुंदर में भी सोना हो सकता है."
" ............................"
"..............................."
2 comments:
आपका शुक्रिया सक्सेनाजी!आपके सभी ब्लॉग सराहनीय है.धन्यवाद!शुभकामनाये!
very nice post.. baddhai :)
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