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December 29, 2012

आखिर कब तक…..................





अपनी ही माँ को अपने सामने कब तक पिटते देखती रहूंगी मै?
मेरे जनम पर अपनी माँ को बलि चढ़ता कब तक देखती रहूंगी मै?
जनम होते ही जिन्दा दफना देना मुझे कब तक देखती रहूंगी मै?
मै एक लडकी हूँ क्या है ये मेरा कसूर ?

कब तक हैवानियत का शिकार होती रहूंगी मै?
मै हू एक माँ, एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी
जो तुब सब के घर को सजाती संवारती है
फिर भी कब तक हैवानियत का शिकार होती रहूंगी मै?
मै एक लडकी हूँ क्या है ये मेरा कसूर ?

कब तक सांस की प्रताडना सहती रहूंगी मै,
दहेज की लालच में कब तक जलती रहूंगी मै,
क्या सांस ननद औरत नहीं होती?
कब तक उनके तानो को अपनी सास बनाती रहूंगी मै,
मै एक लडकी हूँ क्या है ये मेरा कसूर ?

कब तक रावण के आँगन में बंधी रहूंगी मै?
कब तक अपनी कमजोरी को सहती रहूंगी मै?
माँ काली कब ऐसे ही कमजोर बनी रहूंगी मै?
कब तक छिछोरेपण से खुद को बचाती रहूंगी मै?
मै एक लडकी हूँ क्या है ये मेरा कसूर ?

कब तक समाज के बलात्कार को सहती रहूंगी मै?
अगर जिन्दा बची तो कब तक अपनो की नजरो से बचती रहूंगी मै?
क्या वो अपने भी औरते नहीं होती?
क्या उन्हें औरत की इज्जत पता नहीं होती?
फिर भी कब तक उनकी घूरती नजरो से कब बचती रह सकुंगी मै?
मै एक लडकी हूँ क्या है ये मेरा कसूर ?

आज मेरी मौत का मातम मना रहे हो
कब तक ऐसे मातम बनाते रहोगे तुम?
कल को तुम सब भूल जाओगे
कोई दामिनी समाज की बुराइयो के बलि चढ गई
मुझे मातम नहीं बदला हुआ समाज चाहिए!
मै एक लडकी हूँ लेकिन मै माँ, बहन, बेटी, बहु, सास, ननद, नानी, दादी सब कुछ मुझमे ही तो है!

 -------- श्रध्दांजलि 
रविन्द्र रवि

4 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बेटी दामिनी को श्रद्धांजलि

हम तुम्हे मरने ना देगें
जब तलक जिंदा कलम है

Unknown said...

बेहद उत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना .

रविंद्र "रवी" said...

शुक्रिया सक्सेनाजी!

Laxman j purohit said...

अति सुंदर रचना एक नारी के प्रती