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June 13, 2010

यह तृष्णा नहीं बुझेगी.



यह तृष्णा अब नहीं बुझेगी,
कभी नहीं बुझेगी यह तृष्णा अब।
चाहे जो भी हो जाए,
धरती फट जाए,
या सुखा पड़ जाए,
चाहे वो भूखो मर जाए,
यह तृष्णा अब नहीं बुझेगी।
हां मै सिर्फ धन का प्यासा हु
धान का नहीं,
मेरी प्यास सिर्फ धन के लिए है,
इसलिए जब तक मेरा मन न भर जाए
मै धन कमाना चाहता हु,
हां मै आखिरी दम तक सिर्फ धन कमाना चाहता हु।
यही मेरी मंजिल है।
यही मेरी प्यास है,
और यह प्यास यह तृष्णा मरते दम तक नहीं बुझाने वाली।
( दोस्तों आज हर कोई धन दौलत कमाने के पीछे पड़ा है। चाहे कुछ भी हो जाए उसे तो बस धन दौलत चाहिए। इसी विषय पर आधारित यह आज की मेरी कविता आपकी खिदमत में पेश है।)
रविन्द्र 'रवि' १३ जून २०१०

June 12, 2010

उनकी बाते


मेरा तबादला नाशिक शहरसे पुना शहर मी हो गया है। बस कुछ दिनो बाद मी पुना शहर चला जाउंगा। इसलिए शायद ब्लॉग पर जादा न लिख पाऊ। आज अपनी पुराणी किताबे खोज रहा था जिसमे मुझे एक गुटका मिला। आप लोग जानते होंगे की गुटका छोटी किताब को कहते है। मुझे कुछ अच्छी चीजे संभल रखने की बचपन से ही आदत है। यह छोटीसी किताब गोपीकृष्ण व्यास नाम के किसी लेखक ने लिखी है। बहुत ही अच्छी है इसलिए मैंने संभल राखी है।
मै चाहता हु उन्होंने लिखी बाते आपसे शेअर करू।
तो आज का उस किताब का पहला पन्ना यहाँ पेश कर रहा हूँ




" मुझे मत छेड़ो। "
मै शांत सुषुप्त अपनी पर्ण कुटी में
नूतन विश्व को जन्म देकर उसे संस्कार दे रहा हूँ,
उसके शैशव को पवित्र कर्म का यौवन दान देने दो,
उपरांत प्रकृति के पारावार के भी परे चला जाउंगा।
अभी मत छेड़ो मुझे।