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January 3, 2011

जिंदगी

जिन्दगी
तू क्या क्या रंग दिखलाती है,
कभी दिन कभी रात ला
हमे अच्छे और बुरे का पाठ पढाती है।

6 comments:

रविंद्र "रवी" said...

धन्यवाद संजयजी!

mridula pradhan said...

bahut achche.

लाल कलम said...

जिंदगी के रंग तो बहुत अनोखे हैं

रविंद्र "रवी" said...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद मृदुलाजी और दिपजी!

दर्शन कौर धनोय said...
This comment has been removed by the author.
दर्शन कौर धनोय said...

रविनदर जी , आपकी दोनों ही रचनाऐ काबिल -ऐ - तारीफ है |
आपने तो जिन्दगी के मायने ही बदल दिए .....
साहिर साहब ने क्या खूब कहा है की -
"जिन्दगी एक सुलगती -सी चिता है ' साहिर'
शोला -बनती है न ये बुझ के धुँआ होती है |"