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April 5, 2010

खुबसूरत रात

दोस्तों आज मै आपकी खिदमत में मैंने २९-०६-१९८३ को लिखी एक प्रेम कविता पेश कर रहा हुआपको कैसे लगीजरुर लिखियेगाज़रा गौर फरमाइए जनाब...

सूरज डूबा
और एक खुबसूरत
लेकिन
सांवली रात आई।
सांवले पण से संजी
और
चाँद की मंद मंद रोशनी से नहाई
ये रात
कितनी खुबसूरत है।
वो चांदनी में चमकती घनघोर जुल्फे
वो जुल्फों में छुपी मदमस्त आँखे
वो चेहरा, खुबसूरत चेहरा,
किसी शिल्पकार के हाथों से,
कड़ी मेहनत से कुरेदकर बनाया गया
वो खुबसूरत चेहरा
जिसके गहने है
शरारती आँखे
नशीले ओंठ
सुडौल नांक
और वे जुल्फें
कितनी खुबसूरत
लग रही है
ये रात.

10 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

वाह ........ये सांवली कज़रारी रात बहुत खूब

रविंद्र "रवी" said...

धन्यवाद सुमनजी!

Randhir Singh Suman said...

nice

रविंद्र "रवी" said...

Nice to meet you again Sumanji.

संजय भास्‍कर said...

बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

रविंद्र "रवी" said...

Dhanyavad Sanjayji.

संजय भास्‍कर said...

dobara aa gaya
kai kavitaye bar bar padhna chata hoon

रविंद्र "रवी" said...

आपका शतशः धन्यवाद संजयजी.

Anamika said...

bahut khoob ravindra ji!....sanwli kajrari raat!

Anamika said...

bahut khoob ravindra ji!....sanwli kajrari raat!